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वीर शहीद के अंतिम विदाई में हिंदुस्तान और तिब्बत जिंदाबाद के नारे भी गूंजे

नईदिल्ली: ब्लैक टॉप पर बाहादुरी से चीन के सैनिकों को धूल चटाते हुए स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के कंपनी लीडर तेनजिन न्यामा शहीद हो गए। अब तेनजिन की अपने परिवार से हुई आखिरी बातचीत सामने आई है, जिसमें उन्होंने अपने असली दुश्मन देश चीन की बात की है। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स में शामिल तिब्बती युवा 1971 और 1999 के कारगिल युद्ध में बहादुरी के साथ लड़े और दुश्मनों को धूल चटाई, लेकिन इनकी असली कसक चीन है।
चीन के खिलाफ इनकी टीस और बदला लेने की भावना ने ही 29-30 अगस्त की रात को पैंगोंग झील के दक्षिण में ब्लैक टॉप पर वीरता की कहानी लिख दी। स्पेशल फ्रंटियर फोर्स के शूरवीरों ने PLA के जवानों को खदेड़ दिया।इस पूरी कार्रवाई में कंपनी लीडर तेनजिन न्यिमा शहीद हो गए और इसके साथ ही उनकी वीरगाथा भी अमर हो गई।

आखिरी बार हुई थी बात

तेनजिन आखिरी सांस तक चीन को सबक सिखाना चाहते थे। क्योंकि वही उनका असली दुश्मन था। उनके आखिरी शब्द थे ‘आखिरकार हम अपने असली दुश्मन से लड़ रहे हैं’।
ये बातें शहीद होने से पहले उन्होंने फोन पर अपने भाई को कही थी। जब तेनजिन अपने भाई से बात कर रहे थे,उनकी कंपनी पैंगोंग झील के दक्षिण में ऐसी जगह पर थी जहां से बस कुछ ही दूरी पर भारतीय सेना, चीन के सैनिकों को जोरदार जवाब दे रही थी। उसी दौरान उन्होंने अपने भाई से कहा था कि मां को बता दें कि ‘LAC पर कभी भी, कुछ भी हो सकता है’.
उनके बड़े भाई न्यावो ने शहीद तेनजिन की बातों को याद करते हुए आगे कहा कि इस बार तिब्बत के वीर जवानों को अपने असली दुश्मन के सामने डटने का मौका मिल गया है ।ये कारगिल या बांग्लादेश युद्ध जैसा नहीं है। हम आखिरकार अपने असली दुश्मन से लड़ रहे हैं।

भारत के साथ-साथ ये हमारे पहचान की लड़ाई।

29 अगस्त की रात लद्दाख की चोटियों से उन्होंने अपनी 76 साल की मां को भी सरप्राइज कॉल की थी।लेकिन पत्नी से उनकी बात नहीं हो सकी।उन्होंने अपने भाई को फोन पर कहा कि हर एक तिब्बती चीन से लड़ना चाहता है, क्योंकि ये लड़ाई सिर्फ भारत के लिए नहीं है बल्कि ये अपनी धरती के लिए भी है। हमारी पहचान की लड़ाई भी है जिसे हमसे छीन लिया गया है।

तेनजिन ने फोन रखते हुए अपने भाई से जीत के लिए प्रार्थना करने को कहा और कुछ ही घंटों बाद वो देश के लिए शहीद हो गए। लेकिन उन्होंने वो कर दिखाया जिसकी आग कई दशकों से उनके सीने में सुलग रही थी। वो चीन को सबक सिखाने में कामयाब रहे।

हिंदुस्तान और तिब्बत जिंदाबाद के नारे भी गूंजे

यही वजह थी कि 51 साल की उम्र में उन्होंने अग्रिम मोर्चो पर जाने की जिद की और वो गए भी।कमांडो तेनजिन के लिए ये जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई थी। इसलिए चीन से लड़कर सर्वोच्च बलिदान देने वाले तिब्बत के बेटे को आखिरी विदाई देने के लिए पूरा देश ठहर गया था।गन सैल्यूट के साथ ही हिंदुस्तान और तिब्बत जिंदाबाद के नारे भी गूंजे थे।

डॉ सुरेंद्र

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