Uncategorised

यादें: ऐसे थे दिनेश्वर शर्मा

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।।

जीवात्मा अमर है, जब तक संसार में उसको लोग याद करते रहेंगे स्मृतियां जीवित रहेंगी। स्व. दिनेश्वर शर्मा जी भी हमेशा लोगों की स्मृतियों में हमेशा जीवित रहेंगे।

भारतवर्ष ने एक प्रभावशाली प्रशासक को खो दिया। इस निराशा भरे वातावरण में… इस नैराश्य में जब हमारी आस्थाएं डूबती है, तब पूरी प्रशासनिक व्यवस्था में हमारी योजना और हमारी जानकारी में चंद लोग हैं जिनके चेहरे पर दृष्टि टिकती है तो ये आशा जगती है कि व्यवस्था में शोभन बचेगा। उनमें से एक थे दिनेश्वर शर्मा। उन्हें अभी नहीं जाना था। ऐसे लोगों का जाना लोगों को अखर जाता है। वे गए नहीं हैं। याद आते रहेंगे।

स्व. दिनेश्वर शर्मा… बिहार के गया जिले के बेलागंज प्रखंड के पाली गांव के मूल निवासी। वे गांव की संस्कृति से सुगंधित मगध की गौरवशाली मिट्टी में जन्मे वह मेघा थे जिन्होंने देश की सेवा में सुचिता के साथ-साथ जिम्मेदारी के प्रति संवेदित कार्य संस्कृति का आविर्भाव किया। ईमानदारी सौ टका थी। तभी तो कठिन से कठिन टास्क उन्हें सौंपा गया। वास्तव में आज के समय में वे एक असाधारण व्यक्तित्व थे। ऐसे लोग आजकल कम मिलते हैं जो सिद्धांत और उसूलों पर जिया करते हैं।

आईबी चीफ के एक्सटेंशन के ऑफर को ठुकरा दिया, ताकि कनीय पदाधिकारियों का मनोबल छोटा न हो

केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी रहे। एक बेहतरीन पुलिस अधिकारी। दिसम्बर 2014 में खुफिया विभाग के निदेशक बनाये गए… यानी आईबी चीफ। सेवानिवृति के बाद 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आईबी चीफ के पद मिले एक्सटेंशन (सेवा-विस्तार) को यह कहकर ठुकरा दिया कि यह उनसे कनीय पदाधिकारियों का मनोबल छोटा कर देगा जो उस पद के योग्य हैं। अपने कनीय पदाधिकारियों के प्रति ऐसा भाव अब कहां? ऐसा भाव तो अब सिर्फ विरले महामानव में ही दिखते हैं। आजकल तो अधिकारी कुर्सी से चिपके रहने के लिए अपने मूल कार्य व दायित्वों का निर्वहन करने की बजाए किसी आका के चमचागिरी और जोड़-तोड़ करने में लगे रहते हैं।

केंद्र सरकार और कश्मीर के बीच ‘सुलह के सेतु’ बने

केंद्र सरकार का विश्वास उनपर बना रहा। और ये विश्वास कितना मज़बूत था, ये तब देखने को मिला जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशेष पहल पर दिनेश्वर शर्मा को सेवानिवृति के बाद कश्मीर और केंद्र सरकार के बीच ‘सुलह के सेतु’ बनाया गया। कश्मीर से धारा 370 और 35(ए) को हटाने के दिनेश्वर शर्मा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष जम्मू कश्मीर की हकीकत का सही खांका खींचने का काम किया।

उपर्युक्त वाक्यांश में “भरोसा” के बजाए “विश्वास” शब्द लिखा गया है। “भरोसा” एक उम्मीद है, एक आसरा है, जेसे मेरे भरोसे यह कार्य छोड़ सकते हो। “विश्वास” एक धारणा है, यक़ीन है जेसे मुझ पर विश्वास रखो यह काम हो जाएगा। और शायद “विश्वास” के साथ ही प्रधानमंत्री ने दिनेश्वर शर्मा पर बड़ी जिम्मेदारी दी थी।

दरअसल केंद्र सरकार ने आईबी के पूर्व चीफ दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर में इंटरलॉक्यूटर (वार्ताकार) बनाने का फैसला किया था। यह फैसला एक ऐसे समय में हुआ था जब कश्मीर में इस तरह की कवायदों को एक निरर्थक प्रयास के तौर पर देखा जाने लगा था। ऐसा इसलिए भी क्योंकि साल 2000 के बाद से केंद्र कई बार कश्मीर में अपने नुमाइंदे भेज चुका था। सारी कवायद के नतीज़े लगभग सिफर रहे थे।

दिनेश्वर शर्मा को बड़ी ज़िम्मेदारी दी गई थी। उस समय यह चर्चा जोरों पर था कि दिनेश्वर में ऐसा क्या खास है कि उन्हें उस 70 साल के नासूर कश्मीर का इलाज ढूंढने के काबिल समझा गया। वैसे भी कश्मीर उनके लिए नया सब्जेक्ट नहीं था। दिनेश्वर शर्मा ने साल 1992-94 में आईबी के सहायक निदेशक के तौर पर कश्मीर में काम किया था। इसके बाद वे दिल्ली में कश्मीर डेस्क के अध्यक्ष भी रहे थे।

जम्मू-कश्मीर के लोगों की न्यायसंगत आकांक्षाओं को समझने के लिए नियुक्त किये गये शर्मा का तब कहना था कि उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता और चुनौती यहां के युवाओं को Deradicalisation (आमूलीकरण) कर, घाटी को भारत का सीरिया बनने से रोकना है। पत्थरबाजी में शामिल गुमराह छात्रों और युवाओं को शिक्षा और रोजगार से जोड़ने की इनकी पहल काफी असरदार रही। उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के आगे जम्मू कश्मीर की सही तस्वीर पेश की और जो धारा 370 और 35(ए) हटाने के पीछे किए गए उनके कार्यों से काफी मददगार साबित हुई।

70 साल के नासूर कश्मीर का इलाज ढूंढने में मुख्य भूमिका निभाने वाले दिनेश्वर शर्मा को अक्टूबर 2019 में लक्षद्वीप का प्रशासक (उप-राज्यपाल) नियुक्त किया गया था।

जिस मिट्टी में पले-बढ़े, वहां से जुड़ाव बना रहा

इतने बड़े-बड़े ओहदे के बावजूद उनकी पहचान एक सरल, सहज व ईमानदारी शख्सियत की रही। इतने बड़े-बड़े ओहदे मिलने के बाद भी वे उस मिट्टी को नहीं भूले जिस मिट्टी में पल बढ़ कर एक “शख्स” से “शख्सियत” बने। और जाते-जाते अब तो “विरासत” बन गए। एक ऐसी विरासत जिससे सच्चाई पर चलने वालों को प्रेरणा मिलेगी। गांव से उनका जुड़ाव बना रहा। ग्रामीण इनकी सादगी की मिसाल कभी भुलाए नहीं भूलते। उनके भतीजे संतोष कुमार उर्फ प्रिय रंजन बताते हैं कि वे हर साल गांव आते थे। पारिवारिक समारोहों में भी भाग लेते थे। गांव आने पर वह ग्रामीणों के बीच घुल-मिल जाते थे। वह ग्रामीणों से स्थानीय मगही भाषा में ही बातचीत करते थे। आईपीएस और आइबी चीफ होने के बावजूद घर आने पर सुरक्षाकर्मियों को कभी वह साथ नहीं लाते थे। गांव आने पर वे अपने खेत-खलिहान में भी जाते थे। वे खेत और खेती-बारी को देखते व समझते थे। उनके गांव वाले कहते हैं कि हमें शर्मा जी से जीवन का महत्व सीखने की ज़रूरत है। ऐसी सख्शियत पर हमें बहुत गर्व होता है।

अपने गांव के खेत में दिनेश्वर शर्मा

दिनेश्वर शर्मा के समधी पूर्व डीजीपी अभ्यानन्द जी ने उनकी याद में लिखा

दिनेश्वर शर्मा के समधी बिहार के पूर्व डीजीपी अभ्यानन्द जी ने उनकी याद में जो लिखा है वह उनकी सरलता को अभ्यानन्द जी ने लिखा है – “मेरी बेटी की शादी की बात चल रही थी। लड़का IIT Delhi/IIM Ahmedabad का ग्रेजुएट और बड़ी अंतर-राष्ट्रीय कम्पनी में काम कर रहा था। पिताजी भी IPS पदाधिकारी और बिहार के गया ज़िले के ही रहने वाले। मुझे यह रिश्ता अच्छा लगा। मैंने बात करनी शुरू की। पिताजी से मुलाकात नहीं हुई थी। जानकारी प्राप्त हुई कि वह सरकारी कार्यवश पटना आ रहे हैं। मौका देख, उनसे संपर्क साधा और जानकारी मिली कि वह ट्रेन से आ रहे हैं। मैंने उन्हें बताया कि मैं उन्हें लेने पटना रेलवे स्टेशन पर आ जाऊंगा। उन्होंने मना किया यह कह कर कि उनकी सरकारी गाड़ी उन्हें लेने आएगी। फिर भी मैं बिना बताये ही उन्हें लेने चला गया।
गाड़ी लगी प्लेटफार्म पर। मैं उन्हें ढूंढने लगा क्योंकि डिटेल्स पता नहीं था। वे दिखे। अपना बैग हाथ में लिए, 3 टियर स्लीपर के साधारण डब्बे से निकलते हुए। यह मेरी मुलाकात थी संयुक्त निदेशक IB श्री दिनेश्वर शर्मा IPS से।”

नचिकेता ने बताया- स्वयं चाय बनाकर हम बच्चों को पिलाया था

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र नचिकेता वत्स ने बताया कि जमीन से जुड़े हुए व्यक्ति का जाना बेहद ही दुःखदायक है। मुझे इनकी सादगी बेहद पसंद थी। एक बार गीता दीदी के आवास पर इन्होंने स्वयं चाय बनाकर हम बच्चों को पिलाया था वह पल मुझे आजीवन याद रहेगा। बता दें कि गीता दीदी गया शहर में एक चर्चित नाम हैं। वे शैक्षणिक, सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ी रहती हैं। शहर के युवा इन्हें प्यार से गीता दादी भी बुलाते हैं। वे दिनेश्वर शर्मा जी के पारिवारिक सदस्य भी हैं।

गया में गीता दीदी के आवास पर दिनेश्वर शर्मा

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने दिनेश्वर शर्मा के निधन पर शोक प्रकट किया है। प्रधानमंत्री के ट्वीट से ही आमलोगों व मीडिया को उनके निधन की खबर मिली। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने ट्वीट में कहा है कि वह एक बेहतरीन पुलिस अधिकारी थे। वह आंतरिक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ थे।

ऐसे महान शख्सियत को नमन। … विनम्र श्रद्धांजलि

ऋषिकेश

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

Share
Published by
Dr Rishikesh

Recent Posts

बेहोश हुए उपराष्ट्रपति

Bharat varta Desk उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ नैनीताल में तीन दिन के दौरे पर हैं। कुमाऊं… Read More

2 days ago

अब लीडर नहीं,डीलर के हाथो में देश : ललन कुमार

Bharat varta Desk प्सुल्तानगंज महेशी महा दलित टोला में कांग्रेस के सामाजिक न्याय जन चौपाल… Read More

5 days ago

बिहार के कई जिला जज बदले

Bharat varta Desk पटना हाईकोर्ट ने कई प्रिंसिपल जजों को बदल दिया है। कई जज… Read More

6 days ago

प्रधानमंत्री बोले -बिहार समृद्ध होगा तो भारत महाशक्ति बनेगा

Bharat varta Desk बिहार चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज एक बार फिर राज्य… Read More

1 week ago

झारखंड शराब घोटाले में पूर्व आईएएस अधिकारी गिरफ्तार

Bharat varta Desk शराब घोटाला मामले में एसीबी ने अब उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग… Read More

1 week ago

अपर पुलिस महानिदेशक गिरफ्तार

Bharat varta Desk तमिलनाडु से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है। यहां… Read More

1 week ago