भागलपुर: हमारे रहनुमा सोते रहे, ख़्वाब की चोरी होते रहा, राजनीतिक प्रतिद्वंदता की भेंट चढ़ गया रेल मंडल बनना
अजीत कुमार सिंह, आरटीआई कार्यकर्ता
भागलपुर। हमारे रहनुमा सोते रहे… ख़्वाब की चोरी होते रहा… शहर रोते रहा। 2009 में तत्कालीन रेल मंत्री ने भागलपुर में रेल मंडल कार्यालय की घोषणा किया था। भागलपुर रेल मंडल कार्यालय का शिलान्यास भी हुआ। खुशी राम को OSD भी नियुक्त किया गया। कई कार्यालय कर्मी भी पदस्थापित किए गए। यह कार्यालय सुचारू रूप से लगभग 2 वर्षो तक भी संचालित हुआ, प्रतीत होता है राजनीतिक प्रतिद्वंदता की भेंट चढ़ा दी गई। एक कमिटी गठित कर जांच रिपोर्ट समर्पित कराया गया कि भागलपुर रेल मंडल कार्यालय औचित्यहीन है। जबकि मालदा डिवीजन का सबसे अधिक रेवेन्यू देने वाला रेलवे स्टेशन भागलपुर है और अब तो दुमका, देवघर इत्यादि तक इसका क्षेत्र विस्तारित हो चुका है। भागलपुर डिवीजन को मालदा डिवीजन से काट कर बनाया गया था। जांच कमिटी से ऐसा रिपोर्ट आनन-फानन में समर्पित हुआ सा प्रतीत होता है। औचित्यहीन करार दिलाया जाना हजम नहीं होता है। रेलवे बोर्ड से इस रिपोर्ट को जल्दबाजी में स्वीकृत कराया गया है। भागलपुर से OSD को वापस बुला लिया गया। वर्तमान में यह पद अब भी बरकरार है। भागलपुर रेल मंडल कार्यालय के OSD का चार्ज DRM मालदा के पास है या यूं कहें कि भागलपुर रेल मंडल कार्यालय का प्रभार DRM मालदा के पास आज भी है।
भागलपुर के साथ ऐसी दोहरी नीति क्यों किया गया, राजनीतिक प्रतिद्वंदता की भेंट क्यों चढ़ा दी गई, यह तो भागलपुर की जनता को आज भी समझ मे नहीं आ रहा है, परंतु यह एक गंभीर जांच का विषय होने के साथ-साथ त्वरित संज्ञान लेने का विषय है व भागलपुर के साथ न्याय करने का विषय है। भागलपुर की जनता को अब मोदी जी की सरकार से उम्मीद है कि भागलपुर के साथ न्याय करते हुए भागलपुर रेल मंडल कार्यालय को वापस दिलाई जाए।