Bharat Varta Desk: बीकानेर, बीटीयू कुलपति प्रो. अंबरीष शरण विद्यार्थी ने कहा है कि बीकानेर तकनीकी विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की अपेक्षाओं के अनुरूप अपने विद्यार्थियों को भारतीय ज्ञान दर्शन प्रणाली पर आधारित शिक्षा प्रदान करने का फैसला किया है। भारतीय ज्ञान दर्शन, सांस्कृतिक धरोहर, संवैधानिक तथा वैश्विक मूल्य आधारित सृजनशीलता पर आधारित पाठ्यक्रम विकसित करने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया है।
बीआईटी, पटना के पूर्व प्रोफेसर केसी बाजपेई ने बताया कि इस संदर्भ में दो दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन रविवार को किया गया जिसमें देशभर से इस विषय के प्रबुद्ध प्रोफेसरों ने शिरकत किया। प्रो. विजय कुमार कर्ण, नव नालंदा महाविहार, नालंदा, प्रो. सत्यदेव पोद्दार, कुलपति, महाराजा बीर विक्रम विश्वविद्यालय, अगरतला, त्रिपुरा, डॉ. निलय खरे, भूविज्ञान विभाग, नई दिल्ली, डॉ. मेघेंद्र शर्मा, विज्ञान भर्ती, राजस्थान, प्रो. कमलेश गुजरात विश्वविद्यालय, अहमदाबाद, डॉ. एस.के सुमन, लोयोला कॉलेज, चेन्नई, प्रो. धर्मेंद्र कुमार, गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार, गिरघरीलाल जी, AICTE, नई दिल्ली, प्रो. कृष्ण चन्द्र वाजपई, पूर्व प्रोफेसर, बी आई टी, पटना, श्री वामसी मोहन, अक्षय पात्र, जयपुर उपस्थित रहे।
कुलपति प्रो. विद्यार्थी ने बताया कि तकनीकी शिक्षा के विद्यार्थियों को प्राचीन भारत के तकनीकी ज्ञान से लाभान्वित और गौरवान्वित करने के लिए इस तरह का पाठ्यक्रम विकसित किया जा रहा है। इन विषयों को आधुनिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी से भी जोड़ कर छात्रों को बताया जाएगा ताकि छात्र हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जाने और उन पर गर्व कर सकें। यदि छात्र जान जाएं कि दुनिया भर में हो रहे बहुत से वैज्ञानिक विधियों का आविष्कार भारत में बहुत पहले हो चुका था तो उनके मन में अपने देश और संकृति के लिए गौरव का भाव आएगा। उन्होने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों द्वारा प्राचीन आविष्कार,प्राचीन पारंपरिक और स्थानीय ज्ञान, लोकोक्तियों से संबंधित – मौसम एवं पर्यावरण आदि की भविष्यवाणी, कृषि, वानिकी और धातुकर्म, वास्तुकला, भारतीय ललित कला, भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली,शून्य बजट पर आधारित प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग तथा प्राचीन और आधुनिक विज्ञान के स्वरूपों को पाठ्यक्रम में जोड़ने से संबंधित मुद्दों पर संगोष्ठी में मंथन किया गया। दो दिवसीय संगोष्ठी में इस बात पर भी जोर दिया गया कि प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान,चरित्र निर्माण और वसुधैव कुटुंबकम जैसे भारतीय मूल्यों और परंपराओं पर आधारित पाठ्यक्रमों को विकसित किया जाना चाहिए ताकि छात्रों को एक गौरवशाली नागरिक के रूप में विकसित किया जा सके।
संगोष्ठी में डॉ धर्मेंद्र यादव, डॉ. राकेश परमार, डॉ. गायत्री शर्मा, डॉ. अनु शर्मा, नबल सिंह, अभिषेक पुरोहित ने भी विचार रखे। संगोष्ठी का संचालन डॉ. अल्का स्वामी ने किया।
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