NewsNLive नवरात्र विशेष: बिहार के लखीसराय जिला के अन्तर्गत बड़हिया प्रखण्ड मुख्यालय तथा गंगा के किनारे बड़हिया बस्ती के पूर्वी छोर पर मंगलापीठ नामक एक शक्ति स्थल है जहां पर बाला त्रिपुर सुन्दरी मृत्तिका पिंडी में छाया रूप में जाग्रतावस्था में निवास कर रही हैं, जिनका महात्म्य अत्यंत चमत्कारिक एवं अलौकिक है। ऐसी मान्यता है कि जिस भक्त साधक ने माता वैष्णो देवी स्थान की स्थापना की थी, उन्हीं के द्वारा बड़हिया का यह शक्तिस्थल स्थापित है।
बाला त्रिपुर सुन्दरी के मंदिर को स्थानीय लोग महारानी स्थान के नाम से भी पुकारते हैं। बड़हिया रेलवे स्टेशन से मुख्य बाजार की ओर जाने पर श्रीकृष्ण चौक से उत्तर दिशा की ओर मुडऩे वाली पथ में लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर बड़हिया डीह पर यह मंदिर अवस्थित है।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार ऐसी लोक-मान्यता है कि कटरा (कश्मीर) की वैष्णो देवी ही बड़हिया के महारानी स्थान में अपने बाला रूप में विराजती हैं जो सम्पूर्ण विश्व में अद्वितीय मानी जाती हैं। कहते हैं कि कश्मीर स्थित विख्यात वैष्णो देवी तथा बड़हिया निवासिनी बाला त्रिपुर सुन्दरी, दोनों की स्थापना श्रीधर देव नामक एक सिद्ध साधक द्वारा आज से हजारों वर्ष पूर्व की गयी थी।
भगवती बाला त्रिपुर सुन्दरी के अवतरण की रोचक कथा के वर्णन ‘त्रिपुर रहस्य’ व ‘हारीतायन संहिता’ सरीखे ग्रंथों में मिलते हैं। ‘ब्रह्मांड पुराण’ के उत्तर-खंड में ‘ललितोपाख्यान’ के नाम से भी बाला त्रिपुर सुन्दरी के चरित्र का विशद वर्णन है। ललितोपाख्यान में भगवान हयग्रीव के अगस्त्य ऋषि से संवाद के रूप में भंडासुर की उत्पति तथा भगवती ललिता अम्बा के अवतार की कथा के अन्तर्गत ललिता अम्बा की अंशभूता पुत्री भगवती बाला के भंड पुत्रों के साथ संग्राम करने और उन्हें परास्त करने के वर्णन मिलते हैं।
‘त्रिपुरा रहस्य’ के पैंतालिसवें अध्याय में की गई व्याख्या के अनुसार भगवती दुर्गा महाशक्ति त्रिपुरा के अंश से उद्भूत हुई हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार सामान्यतः नौ वर्षीया कन्या के लिए ‘दुर्गा’ शब्द प्रयुक्त होता है और भगवती त्रिपुरा की अवस्था भी नौ वर्ष ही मानी जाती है जिससे भगवती त्रिपुरा के अंश से दुर्गा के समुद्भूत होने की पुष्टि होती है और महात्रिपुर सुन्दरी, बाला त्रिपुर सुन्दरी, दुर्गा और श्रीविद्या में कोई भेद नहीं है। सभी एक ही आदि महाशक्ति के विभिन्न माया रूप हैं।
बड़हिया निवासिनी बाला त्रिपुर सुन्दरी की अवतार कथा के बारे में जानकर बताते हैं कि कश्मीर में वैष्णो देवी को प्रतिष्ठित करने के उपरांत भ्रमण के क्रम में बड़हिया निवास के दौरान श्रीधर देव को एक रात सुप्तावस्था में बाला त्रिपुर सुन्दरी ने स्वप्न में निर्देश दिया कि कल प्रात:काल में गंगा की जलधारा में बहती हुई मिट्टी के खप्पड़ में ज्योति शिखा के रूप में मैं तुम्हें दर्शन दूंगी। स्वप्न में दिए गए निर्देश के अनुसार प्रात:काल श्रीधर देव को गंगा की जलधारा में बहती हुई खप्पड़ में ज्योति-शिखा का दर्शन हुआ। श्रीधर देव ने उस खप्पड़ को ग्रहण कर देवी के निर्देशानुसार मिट्टी की चार पिंडियां स्थापित की जिनमें क्रमश: त्रिपुर सुन्दरी, महालक्ष्मी और महासरस्वती छाया रूप में साक्षात निवास करती हैं। इन पिंडों के अतिरिक्त मन्दिर के अंदर दक्षिणी कोण पर सात अर्ध्य मृत्तिका पिंडी भी अवस्थित हैं जिनमें ब्राह्मणी, माहेश्वरी, वैष्णवी, वाराही, कात्यायनी, इन्द्राणी तथा चामुण्डा देवियां निवास करती हैं। मंदिर के उत्तरी कोण पर तारा या रौद्री का स्थान बताया जाता है। कहते हैं कि मंदिर के ताखों में देवी की जोगनियां निवास करती हैं। इस तरह यहाँ अपने विभिन्न रूपों में विद्यमान रहकर देवी जगत् के कल्याण हेतु उपस्थित रहती हैं।
मन्दिर में एक दीपक प्राचीन समय से ही अखण्ड रूप में जल रहा है, जिसे भगवती बाला त्रिपुर सुन्दरी की प्रतीक ज्योति माना जाता है। इस मंदिर में स्थापित मृत्तिका पिंडियों की सुन्दरता के बारे में कहा जाता है कि प्रत्येक दिन 12 बजे से 2 बजे दोपहर के बीच यह अपूर्व रूप से बढ़ जाती है जो कि अलौकिक है। सूर्यास्त के बाद मंदिर के अंदर पुरूषों का प्रवेश वर्जित है। सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति द्वारा मंदिर परिसर स्थित कुएं के अभिमंत्रित नीर (जल) पीने से सर्पदंश के प्रभाव से चमत्कारिक रूप से पूर्णत: मुक्ति मिलती है।
बाला त्रिपुर सुन्दरी भक्तों की मनोवांछित मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इस कारण मंदिर में सालो भर श्रद्धालु नर-नारियों की अपार भीड़ लगी रहती है। प्रत्येक मंगलवार तथा शनिवार को यहाँ भक्तों का मानों सैलाब ही उमड़ पड़ता है। किंतु नवरात्र में यह संख्या अपूर्व रूप से बढ़ जाती है।
मां का भव्य मंदिर करीब 150 फीट ऊंचा है जिसका 150 करोड़ की राशि से सौंदर्यीकरण कराया गया है।यहां यात्रियों के ठहरने हेतु सुविधासम्पन्न विश्रामगृह भी है। संध्या समय विद्युत बल्बों की लड़ियों की रौशनी में नहाकर मंदिर का सौंदर्य द्विगुणित हो उठता है।
मां त्रिपुर बाला सुंदरी की मान्यता बड़हिया की रक्षक देवी के रूप में है जिनके प्रति लोगों की अपार श्रद्धा है।
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