
-शिव शंकर सिंह पारिजात, उप जनसंपर्क निदेशक (अवकाश प्राप्त), सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बिहार सरकार।
नवरात्रि स्पेशल: शारदीय नवरात्र के प्रारंभ होते ही आद्या देवी शक्ति के पूजन-आराधन व स्मरण के अनुष्ठान शुरू हो जाते हैं। सर्वधर्म समभाव की स्थली बिहार में ऐसे कई स्थान हैं जिनकी प्रसिद्धि शक्ति-पीठ के रुप में है। बिहार के मुंगेर में स्थित चण्डिका स्थान की गणना ऐसे ही जाग्रत शक्ति-स्थल के रूप में होती है जो कि नगर से एक किमी की दूरी पर एक गुफा में स्थित है।
चण्डिका स्थान का महात्म्य इस बात को लेकर विशिष्ट है कि इसका संबंध महाभारतकालीन वीर योद्धा अंगराज कर्ण के साथ है। ऐसी मान्यता है कि मां चण्डिका के परम् भक्त कुंतीपुत्र कर्ण प्रतिदिन प्रथम प्रहर में अपनी राजधानी वर्तमान भागलपुर स्थित कर्णगढ़ से गंगा-मार्ग से मुंगेर के चण्डिका स्थान में जाकर देवी के पूजन के पश्चात् खौलती कड़ाही में कूदकर अपने प्राण समर्पित कर देते थे। प्रतिदिन देवी प्रसन्न होकर कर्ण को जीवन-दान के साथ सवा मन सोना प्रदान करती थी जिसे वे दीन-दुखियों को दान कर देते थे।
कहते हैं कि एक बार एक लोभी राजा ने छलवश यह सब देख लिया जिससे देवी अप्रसन्न होकर उस कड़ाही को उलट दिया जिसमें कर्ण प्रतिदिन प्राण उत्सर्ग करते थे। ऐसी मान्यता है कि इसी कड़ाही के नीचे देवी की आंख का चिन्ह अंकित है जिसकी पूजा भक्तगण करते हैं। मान्यता है कि यहां मां सती (मां पार्वती) की बाईं आंख गिरी थी। 51 अंग इधर-उधर गिरे थे, जिसमें आंख चंडिका स्थान में। देवी के 52 शक्तिपीठों में से एक मां चंडिका का मंदिर है। कहा जाता है कि यहां पूजा करने वालों की आंखों की पीड़ा दूर होती है।
ऐसे तो यहां सालों भर भक्तों का आवागमन लगा रहता है, पर नवरात्र के दिनों में यह संख्या अत्यधिक बढ़ जाती है।
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