देश दुनिया

….ताकि नई पीढ़ी को याद रहें आदिवासी अधिकारों के योद्धा जयपाल सिंह मुंडा श्रद्धांजलि

रांची से डॉक्टर असलम परवेज
(3 जनवरी 1903 – 20 मार्च 1970)

आज आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले योद्धा जयपाल सिंह मुंडा की जयंती है. वे मेरे दादा खान बहादुर हबीब उर रहमान के दोस्त थे. बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी जयपाल सिंह एक ऐसे शख्सियत हैं जिनपर हर झारखंडवासी को गर्व है. मगर उनके योगदानों को , उनके व्यक्तित्व व कृतित्व को नई पीढ़ी भूलती जा रही है. न सरकार उनकी याद दिलाना चाहती है और ना ही पुरानी पीढ़ी के लोग.
नई पीढ़ी को यह जानना चाहिए कि जयपाल सिंह भारतीय आदिवासियों और झारखंड आंदोलन के एक सर्वोच्च नेता थे. उनमें अद्भुत प्रतिभा थी .एक जाने माने राजनीतिज्ञ, पत्रकार, लेखक, संपादक, शिक्षाविद् और 1925 में ‘ऑक्सफोर्ड ब्लू’ का खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे.उनकी कप्तानी में 1928 के ओलिंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता था . वे अंग्रेज भारत में आईपीएस अधिकारी भी थे.
उनका जन्म खुंटी के तपकरा गांव में 3 जनवरी 1903 को हुआ था. उनकी पढ़ाई ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई थी. आदिवासी समाज की दयनीय स्थिति के खिलाफ और उनको अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने 1938 में अखिल भारतीय आदिवासी महासभा नामक संस्था बनाई. उन्होंने पानी पर अलग आदिवासी राज्य की मांग उठाई जिसमें उन्होंने वर्तमान झारखंड, उड़ीसा का उत्तरी भाग, छत्तीसगढ़ और बंगाल के कुछ इसको को शामिल करने की मांग की. अलग झारखंड राज्य का सपना सबसे पहली बार जयपाल सिंह मुंडा ने ही देखा था जो वर्ष 2000 में पूरी हुई.
संविधान सभा के लिए जब वे बिहार प्रांत से निर्वाचित हुए तो संविधान में जनजाति अधिकारों को शामिल कराने की जमकर वकालत की. यह उनकी ही देन है कि 400 आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया.

राजनीतिक पार्टी का गठन
उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए झारखंड पार्टी का गठन किया. 1952 के चुनाव में उनकी पार्टी के 3 सांसद और 23 विधायक जीते . जयपाल सिंह लगातार चार लोकसभा चुनाव जीते थे.
आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष करते-करते 20 मार्च 1970 को जयपाल सिंह मुंडा इस दुनिया से प्रस्थान कर गए. लेकिन उनके किए गए काम आज भी अमर है. जल ,जंगल ,जमीन की रक्षा के लिए उन्होंने जो शंखनाद किया उसकी गूंज आज भी सुनाई पड़ रही है. मगर सरकारी स्तर पर उनके योगदान को भुला दिया गया है. वे झारखंड की महान विभूति थे. झारखंड की नई पीढ़ी उन्हें याद रखे, इसके लिए सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर उनके जीवन और कामों का प्रचार प्रसार होना चाहिए.

डॉ सुरेंद्र

Recent Posts

IAS अधिकारी सुजाता चतुर्वेदी यूपीएससी की मेंबर बनीं

Bharat varta Desk बिहार कैडर की 1989 बैच की आईएएस अधिकारी सुजाता चतुर्वेदी भारतीय संघ… Read More

17 hours ago

रिम्स निदेशक के हटाए जाने के फैसले पर हाईकोर्ट की रोक

Bharat varta Desk झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स के निदेशक डॉ राजकुमार को… Read More

2 days ago

140 करोड़ भारतीयों का आक्रोश… पहलगाम के गुनहगारों और पनाहगारों को सजा मिलकर रहेगी,

Bharat varta Desk मन की बात के 121वें एपिसोड में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश-दुनिया को संबोधित कर रहे हैं। उन्होंने… Read More

3 days ago

पेपर लीक कांड का सरगना संजीव मुखिया गिरफ्तार, 3 लाख का इनामी

Bharat varta Desk पेपर लीक मामले के मास्टरमाइंड संजीव मुखिया उर्फ लूटन को बिहार के… Read More

5 days ago

पहलगाम हमले में पाकिस्तान का बचाव करने वाला असम विधायक गिरफ्तार

Bharat varta Desk पहलगाम आतंकवादी हमले में पाकिस्तान और उसकी संलिप्तता का कथित तौर पर… Read More

6 days ago

सोचा नहीं होगा, ऐसी सजा देंगे; पहलगाम आतंकी हमले पर पहली बार मधुबनी में बोले PM नरेंद्र मोदी

Bharat varta Desk पीएम नरेंद्र मोदी ने पंचायती राज दिवस के मौके पर बिहार के… Read More

6 days ago