पॉलिटिक्स

जैसे अभयानंद से लड़ाई में चलता हुए थे आशीष रंजन, उसी तरह ललन सिंह के कारण आरसीपी होंगे आउट?

  • रवीन्द नाथ तिवारी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जदयू के विधायकों को अगले 72 घंटे तक पटना में रहने को कहा है। लोग बिहार में सियासी तूफान का अनुमान लगा रहे हैं। कोई कह रहा है कि नीतीश एनडीए छोड़कर राजद से हाथ मिला लेंगे तो कोई कह रहा है कि सरकार की शेष पारी भाजपा को खेलने देंगे। लेकिन ज्यादातर चर्चा इस बात को लेकर है कि विधायकों को कैंप कराने का मतलब है कि केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को राज्यसभा में उम्मीदवार नहीं बनाया जाए तो कोई विधायक उनके साथ भागे नहीं।
कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आरसीपी सिंह को दूसरी बार राज्यसभा भेजने नहीं जा रहे हैं। इसका मतलब उनका मंत्री पद से पत्ता साफ। यह भी कहा जा रहा है कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि वे अपने हस्ताक्षर से आरसीपी को राज्यसभा का उम्मीदवार नहीं बनने देंगे।

आरसीपी की तरह आशीष रंजन की भी तूती बोलती थी

आरसीपी और ललन सिंह प्रकरण 10 – 12 साल पहले आशीष रंजन सिन्हा और अभयानंद प्रकरण की याद दिला रहा है। लोगों को याद होगा कि उस समय बिहार के डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा थे और एडीजी मुख्यालय अभयानंद थे। जिस तरह से केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर प्रभाव था, ठीक उसी तरह डीजीपी के रूप में आशीष रंजन सिन्हा की तूती बोलती थी। आरसीपी की तरह आशीष रंजन भी मुख्यमंत्री की जाति के थे और उनके जिले के रहने वाले थे। आरसीपी की तरह ही मुख्यमंत्री पर वे काफी प्रभावी थे। यह भी कहा जाता था कि जमींदार कुर्मी परिवार का होने के कारण आशीष रंजन सिन्हा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर ज्यादा दबाव बनाए हुए थे। वे आरसीपी की ही तरह लंबे समय तक नीतीश के नाक के बाल बने रहे। ‌ लेकिन जिस तरह से ललन सिंह और आरसीपी में विवाद शुरू हुआ, उसी तरह एडीजी मुख्यालय बनने के बाद अभयानंद का आशीष रंजन सिन्हा से विवाद शुरू हुआ था। डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा के कई फैसलों का एडीजी अभयानंद विरोध करते थे। दोनों के बीच तकरार इतना बढ़ गया था कि पूरे राज्य में इसकी चर्चा होने लगी। यहां तक कि राज्य के दोनों शीर्षस्थ अधिकारियों में बातचीत होनी भी बंद हो गई थी।उस समय राज्य का पुलिस महकमा उसी तरह असहज स्थिति में पहुंच गया था जिस कदर आज ललन – आरसीपी विवाद में जदयू का संगठन महीनों से असहज स्थिति में पहुंचा हुआ है।
उसके बाद ऐसा दौर आया कि जिस तरह आरसीपी सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते केंद्रीय मंत्री बन गए और ललन सिंह देखते रह गए। इसके बाद लोगों ने कहना शुरू किया कि अपनी जाति का होने के कारण आरसीपी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ज्यादा चाहते हैं इसीलिए वे ललन सिंह पर भारी पड़े। ठीक उसी तरह उस समय आशीष रंजन सिन्हा भारी पड़े और एडीजी मुख्यालय से अभयानंद को हटाकर बीएमपी में भेज दिया गया। तब कहा जाने लगा था कि मुख्यमंत्री ने अपनी जाति के डीजीपी को सपोर्ट किया। बहुत दिनों तक अभयानंद शंटिंग में रहे।
मुझे जैसा याद है कि उस दौरान अभयानंद मुख्यमंत्री की उपेक्षा से काफी दुखी रहा करते थे। इस बीच उन्होंने काफी प्रयास करके अपना केंद्रीय प्रतिनियोजन करवा लिया लेकिन बिहार सरकार ने उन्हें विरमित नहीं किया। इसके लिए अभयानंद ने मुख्यमंत्री से मिलने के लिए कई बार समय मांगा लेकिन मुख्यमंत्री उनसे नहीं मिले। अचानक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें मिलने का समय दिया। मिलने के बाद जब अभयानंद ने उन्हें केंद्रीय प्रतिनियोजन के लिए विरमित करने का आग्रह किया तो मुख्यमंत्री ने उनसे बिहार नहीं छोड़ने का आग्रह किया। यही नहीं मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि मैं भविष्य में आपको बिहार पुलिस का बागडोर सौंपने वाला हूं। आप क्यों बिहार से बाहर जा रहे हैं? मुख्यमंत्री की बातें अभयानंद के लिए हैरान करने वाली थीं। इसके बाद अभयानंद ने डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा द्वारा अपने साथ किए गए व्यवहार और उनकी कार्यशैली के बारे में मुख्यमंत्री से शिकायत की। उनके द्वारा अपने पर जातिगत टिप्पणी को लेकर भी दुःख जताया। इसको मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गंभीरता से लिया। यही नहीं उस समय के प्रधान सचिव आरसीपी सिंह को बुलाकर अभयानंद के सामने ही आशीष रंजन सिन्हा के प्रति अपनी नाराजगी का इजहार किया।
इधर एडीजी मुख्यालय से अभयानंद के हटने के बाद डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा को फ्री हैंड मिल गया था। वे अपने हिसाब से ट्रांसफर-पोस्टिंग और अन्य फैसले लेने लगे थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि वे तत्काल अपनी नाराजगी जल्दी किसी पर जाहिर नहीं करते हैं। किसी के काम से नाराज भी होते हैं तो धीरे-धीरे उसको टिकाते हैं और जिसको एक बार टिका लेते हैं उसको कभी जीवन में माफ नहीं करते। भले ही उनके आलोचक उनपर भ्रष्ट अफसर और नेताओं पर मेहरबान होने का आरोप लगाते हैं मगर ऐसा देखा गया है कि वह जिसको टिका लेते हैं वह ईमानदार हो या बेईमान, कितना भी करीबी क्यों ना हो उसके खिलाफ कार्रवाई कर देते हैं, उसे अपने से दूर कर देते हैं। आशीष रंजन सिन्हा के साथ भी ऐसा ही हुआ। डीजीपी आशीष रंजन सिन्हा अपने को अजेय समझ रहे थे, मुख्यमंत्री की कमजोरी समझे जा रहे थे जैसा कि आज आरसीपी सिंह को समझा जा रहा है मगर एक झटके में नीतीश ने डीजीपी के पद से आशीष रंजन सिन्हा को चलता कर दिया। कहा जाता है कि आशीष रंजन आईपीएस अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का प्रस्ताव गृह विभाग को भेज कर शाम को संजय गांधी जैविक उद्यान में टहल रहे थे। इस दौरान वे अपने कुछ साथियों से बातचीत कर रहे थे कि अभयानंद के समय के कई अधिकारियों को उन्होंने ‘जगह’ पर भेज दिया है। इसी दौरान उनके अंगरक्षको ने उनके पास आकर बताया कि आपको डीजीपी से हटा दिया गया है। टीवी पर ऐसा दिखाया जा रहा है। आशीष रंजन को विश्वास नहीं हुआ मगर सचमुच वे हटाए जा चुके थे। उसके बाद कभी आशीष रंजन को मुख्यमंत्री ने अपने करीब नहीं आने दिया।
कहने का मतलब यह हुआ कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार जात और जमात से ऊपर उठकर ऐसे फैसले लेते हैं कि लोग दंग रह जाते हैं। आरसीपी सिंह ने इतने सालों तक नजदीक रहने के बाद भी शायद मुख्यमंत्री के स्वभाव से सीख नहीं ली।

ऐसा ही होने जा रहा है आरसीपी के मामले में

यही वजह है कि आरसीपी सिंह के मामले में भी कुछ ऐसा ही होने की स्थिति बन गई है। आरसीपी करीब तीन दशक से मुख्यमंत्री के साथ रहे हैं। वह उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी हुआ करते थे। रेल मंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने उन्हें अपने साथ पीएस बनाकर लाया। जब बिहार के मुख्यमंत्री बने तो यहां अपना पीएस बनाया। लंबे समय तक बिहार सरकार के सारे बड़े फैसले प्रधान सचिव के रूप में आरसीपी सिंह ही लिया करते थे। आईएएस-आईपीएस और दूसरे अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग में उनकी सबसे बड़ी भूमिका होती थी। मुख्यमंत्री का अपने गृह जिला के इस आईएएस अधिकारी पर मेहरबानी का आलम ऐसा था कि उन्हें नौकरी से त्यागपत्र दिला कर राज्यसभा का सदस्य बना दिया। यही नहीं पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना दिया। उस समय मुख्यमंत्री नीतीश पर जातिवाद का आरोप लगा। कहा गया कि कई नेताओं ने संगठन में अपना जीवन होम कर दिया लेकिन उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष ना बनाकर एक पूर्व नौकरशाह को केवल जाति का होने के कारण राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाना सही नहीं है। जब केंद्र में जदयू कोटे से मंत्री बनने की बात हुई तो आरसीपी सिंह ने लोकसभा सदस्य ललन सिंह को पछाड़कर मंत्री बन गए। उस समय कहा गया कि मुख्यमंत्री ने अपनी जाति का होने के कारण आरसीपी सिंह को ही मंत्री बनवा दिया और संघर्ष के दिनों के साथी ललन सिंह को छोड़ दिया। लेकिन मुख्यमंत्री के नजदीकी लोगों की ओर से कहा गया कि पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के कारण मंत्री बनने के संबंध में फैसला आरसीपी सिंह को लेना था। इसका लाभ उठाते हुए उन्होंने मुख्यमंत्री से पूछे बिना खुद अपने को मंत्री बनवा लिया हालांकि यह बात लोगों को हजम नहीं हुई। क्योंकि बाद में ऐसे सवालों के जवाब में मीडिया के समक्ष आरसीपी सिंह ने खुद कहा कि हमारे नेता नीतीश बाबू ने जैसा चाहा वैसा हुआ। मैं भला खुद मंत्री कैसे बन सकता हूं।
अब जब राज्यसभा में दूसरी बार आरसीपी के जाने की बारी आई है तो मीडिया में लगातार कई दिनों से यह चर्चा हो रही है कि मुख्यमंत्री इस बार उन्हें राज्यसभा भेजने के मूड में नहीं हैं। हालांकि अधिकांश राजनीतिक प्रेक्षकों के गले से यह बात नहीं उतर रही है कि आरसीपी को दोबारा राज्यसभा भेजने से मुख्यमंत्री रोकेंगे क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि आरसीपी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हर राज को जानते हैं। आरसीपी के कारण मुख्यमंत्री ने काफी विवाद भी झेला है। यह भी कहा जाता है कि मुख्यमंत्री के बेटे आरसीपी सिंह के काफी नजदीक हैं। आरसीपी को नाराज करने की क्षमता सीएम में नहीं है। राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के अड़ जाने के कारण आरसीपी को रोकने की सिर्फ हवा बनायी जा रही है। विशेष स्थिति आएगी तो सेटिंग करके आरसीपी को भाजपा से राज्यसभा भेजा जा सकता है। नीतीश और आरसीपी के संबंधों को नजदीक से जानने का दावा करने वाले यह भी दावा कर रहे हैं कि हो सकता है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खुद राज्यसभा में जाएं और आरसीपी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दें क्योंकि आरसीपी के साथ ज्यादातर विधायक और कार्यकर्ता हैं। आरसीपी अलग हुए तो पार्टी का टूटना तय है। यह भी कहा जा रहा है कि आरसीपी सिंह भाजपा नेतृत्व से बेहद नजदीक हो गए हैं। भाजपा नहीं चाहेगी कि वे ड्रॉप हों। जो हो आने वाले समय में सब कुछ स्पष्ट होने वाला है मगर यह बात तय है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए में ही रहेंगे वह राजद के साथ जाने वाले नहीं हैं क्योंकि राजद के साथ रहकर उन्होंने अपना हश्र देख लिया है। ऐसे में वे जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बना देंगे या उप मुख्यमंत्री बना देंगे, इस अटकलबाजी में कोई दम नहीं है।
भाजपा में रहकर वह कितना भी असहज महसूस करते हों मगर राजद से ज्यादा असहज स्थिति भाजपा में उनके साथ नहीं हो सकती है। ऐसे में भाजपा छोड़ने का कोई सवाल नहीं है , यह बात जदयू के वैसे पुराने नेता भी कह रहे हैं जो यह कहते हैं कि मुख्यमंत्री के फैसले के बारे में सिर्फ वही जानते हैं।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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