
वृक्ष: बी द चेंज की मुहिम ने लाया बदलाव
गांव से हर साल एक दर्जन से ज्यादा स्टूडेंट्स बिना किसी बड़ी कोचिंग में पढ़े जेईई में सिलेक्ट होते हैं.
NEWSNLIVE DESK: हम ले चलते हैं आपको बिहार का एक गांव जो कभी अपने फैब्रिक प्रोडक्शन के लिए जाना जाता था, आज वहां से आईआईटियन निकल रहे हैं. पावरलूम का शोर भी यहां जेईई की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स को लक्ष्य से भटका नहीं पाती. यहां स्टूडेंट्स का प्रिपरेशन मॉडल भी गजब का है. तेरा तुझको अर्पण फार्मूले पर यहां के बच्चे अपने सीनियर्स से प्रेरणा और गाइडेंस ले रहे हैं.
बुनकर बाहुल्य गांव है पटवाटोली
बिहार के गया जिले के मानपुर में पटवाटोली नाम का गांव है. यहां की हर घर और हर गली में पावरलूम का अनवरत शोर इसे दूसरी जगह से अलग बनाता है. यहां एक खास लाइब्रेरी देखने को मिलेगी. ऐसी लाइब्रेरी जो किताबों की संख्या के लिए नहीं बल्कि अपने मिशन के लिहाज से अनूठी है. एक बड़े से कमरे में चल रही ये लाइब्रेरी गवाह है उन तमाम विद्यार्थियों के मेहनत की, जो सीमित संसाधनों के बावजूद जेईई क्रैक करके आईआईटी में दाखिला पाने में सफल रहे.गांव से हर साल एक दर्जन से ज्यादा स्टूडेंट्स बिना किसी बड़ी कोचिंग में पढ़े जेईई में सिलेक्ट होते हैं.
क्या कहते हैं मानपुर निवासी
लाइब्रेरी के केयरटेकर चंद्रकांतजी बताते हैं कि पटवाटोली को पहले मैनचेस्टर ऑफ बिहार के नाम से जाना जाता था. क्योंकि यहां लूम के जरिये चादर, तौलिये, गमछा आदि का उत्पादन होता है. लेकिन अब इसकी पहचान विलेज ऑफ आईआईटियंस के नाम से भी है. इस गांव से अब हर साल एक दर्जन से ज्यादा छात्र-छात्राएं बिना किसी बड़ी कोचिंग के ही जेईई में सेलेक्शन पाते हैं. सफलता की ये इबारत इसी लाइब्रेरी में कड़ी मेहनत और सीनियर्स के गाइडेंस के साथ लिखी जाती है.
वृक्ष: बी द चेंज की मुहिम ने बदल डाला इतिहास
1996 में हुई जब गांव के जितेन्द्र नामक युवक ने आईआईटी में प्रवेश पाया. उसके बाद से इस गांव में बहुत ही तेजी से बदलाव हुआ. उससे यहां के बच्चे बहुत प्रेरित हुए. जेईई की तैयारी को क्रेज हो गया. जितेन्द्र ने ही यहां वृक्ष बी द चेंज संस्था के नाम से ये लाइब्रेरी शुरू कराई जहां सभी इच्छुक बच्चे आकर निः शुल्क पढ़ सकें. यहां किताबों की व्यवस्था हुई. यह लाइब्रेरी इसी गांव के उन युवकों के आर्थिक सहयोग से चलती है जो आईआईटी में सफलता पाने के बाद आज विदेशों में नौकरी कर रहे हैं.
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