आज है शरद पूर्णिमा, महत्त्व बता रहे आचार्य मनकेश्वर नाथ तिवारी…..
Bharat varta desk: आज 19 अक्टूबर मंगलवार को संध्या 6:41 बजे से शरद पूर्णिमा लग रही है जो 20 अक्टूबर बुधवार को संध्या 7:33 बजे समाप्त हो जाएगा। यह उत्सव रात्रि प्रधान होने से प्रदोषो रजनीमुखम सूर्य अस्तोतर त्रि मुहूर्त प्रदोषो इस शास्त्र वचन के अनुसार 19 अक्टूबर को ही शरदपूर्णिमा के कृत्य सम्पादित होंगे। स्नान दान की पूर्णिमा बुधवार को है।आरोग्यता आनन्द अमृतत्व की सम्प्राप्ति है शरदपूर्णिमा। शरद पूर्णिमा को ही श्री राधा कृष्ण ने महारास लीला किया था अतः उसे प्रेम प्रेम पूर्णिमा भी कहा जा सकता है। श्रीकृष्ण-राधा के साथ समस्त प्राणियों को शरद पूर्णिमा का बहुत हार्दिक प्रतीक्षा होता है। इस दिन से ही देवता, मनुष्य, और पशु-पक्षी, सबके जीवन मे नृत्य का जन्म हुआ। देवताओ को भी यह दुर्लभ होता है। अमृत के लिये ही चन्दमा को भगवान शिव अपने मस्तक पर धारण करते है जिसे चन्द्रशेखर चंद्रमौलि चन्द्रभाल सुशोभित है गले मे धारण अष्टकूट हलाहल गरल के कारण ही भगवान आशुतोष को चन्द्रमौली हुये। आज के दिन पूरे रात्रिअमृत वर्षा चन्द्रमा प्रदान करते है। शास्त्रों में शरद पूर्णिमा के सम्बंध में चर्चित है। मधुर संगीतमय चंद्र देव पूरी 16 कलाओं के साथ इस रात सभी लोकों को तृप्त करते हैं। आकाश में इनका एकक्षत्र राज होता है इस दिन उनका 27 नक्षत्रो उनकी पत्नियां उनके साथ होती हैं- रोहिणी, कृतिका आदि। रातभर उनकी मुस्कराहट संगीतमय नृत्य करती हैं। जड़-चेतन, सब के सब मंत्रमुग्ध रहते हैं। राधा के एकनिष्ठ कृष्ण इस बात को जानते थे, इसलिए इसी दिन उन्होंने महारास रचाया था। गोपियां विरह में थीं, तो आश्विन शुक्ल पक्ष में चंद्रदेव उन्हें और विरह प्रदान कर रहे थे। आश्विन पूर्णिमा हुई और किसी तरह गोपियों का दिन बीता। रात हुई तो चंद्र देव ने अपना जादू चलाया और उधर से बांसुरी की मनमोहक तान, इस महारास का श्रीमद्भागवत में मनमोहक वर्णन भी है। देवी-देवताओं में होड़ लगी है। सब विमान में सवार होकर एकटक देख रहे हैं। गोपियों के ऐसे भाग्य से चंद्रदेव और उनकी सभी पत्नियां बार-बार गोपियों के जन्म को ही सार्थक मान रही हैं। हां, अपने को धन्य मान भी रही हैं कि भगवान की लीला में उनका भी योगदान है। भगवान धीरे-धीरे नाच रहे हैं। गोपियां गा रही होती हैं। ऐसे रास पूर्णिमा शरद पूर्णिमा में रात को गाय के दूध से बनी खीर या केवल दूध छत पर रखने का प्रचलन है। ऐसी मान्यता है कि चंद्र देव के द्वारा बरसायी जा रही अमृत की बूंदें खीर या दूध को अमृत से भर देती है। इस खीर में गाय का घृत हो तो उत्तम है। खीर रखते हुये सावधानी वर्ते की कोई कीट पतंग जीव जंतु स्पर्श नही करे। इस रात मध्य आकाश में स्थित चंद्रमा की पूजा करने का विधान भी है, जिसमें उन्हें पूजा के अन्त में अर्ध्य भी दिया जाता है। भोग भी भगवान को इसी मध्य रात्रि में लगाया जाता है। इसे परिवार के बीच में बांटकर खाया जाता है प्रसाद के रूप में, सुबह स्नान-ध्यान-पूजा पाठ करने के बाद। श्रीलक्ष्मी जी भ्राता चंद्रमा इस रात पूजा-पाठ करने वालों को शीघ्रता से फल देते हैं। इस दिन योग्य आचार्य के द्वारा या स्वयं द्वारा आध्यात्मिक योग करना श्रेयस्कर होते है। मृतसंजीवनीमहाविद्या, कनकधारा श्रीसूक्क्त लक्ष्मीसूक्त श्रीयंत्र कुवेर यंत्र पूजन पाठ जप तप विशेष लाभ प्रद है। अमृतत्व प्राप्ति हेतु परिवार में आपसी सामंजस्य परस्पर प्रेम की प्रगाढ़ता जो प्रत्यक्ष अमृत है के लिये तथा भय आपत्ति कष्ट आकस्मिक घटनाओं से बचने के लिये खुले आसमान में हविष्यान्न खीर को रख कर प्रसाद स्वरूप ग्रहण करने से फलित होता है। जैसा अन्न वैसा मन शरदपूर्णिमा के रात्रि में चंद्रमा से अमृत टपकता है अतः इस दुर्लभ अमृतमय मुहूर्त व्यर्थ नही हो सदुपयोग करें। सभी जाति धर्म के महानुभावों को अमृत पान करना चाहिये ।
आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी मो0 8210379212