हरितालिका (तीज) व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि हस्त नक्षत्र से युक्त सर्वोत्तम होता है। और संयोग वश इस वर्ष 09 सितम्बर गुरुबार 2021 को यह दुर्लभ संयोग है। सौभाग्यवती महिलाओं का हरितालिका तीज व्रत अखण्ड सौभग्यवती कारक शुभ सुहाग का पर्व है। जैसी नदियों में गंगा पुराणों में महाभारत वेदों में सामवेद इंद्रियों में मन सर्वश्रेष्ठ है वैसे ही यह व्रत भी सर्वश्रेष्ठ व्रतराज है, यह त्योहार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। तीज की तिथि माता पार्वती की मानी गई है। हरियाली तीज, गणगौर तीज, कजली तीज, सातुड़ी तीज की तरह हरतालिका तीज भी बड़ी तीज होती है। इस व्रत के प्रताप से अखंड सौभाग्य की शुभ प्राप्ति होती है। ऐसे इस व्रत को व्रतराज से विभूषित किया गया है। भगवती पार्वती जगत जननी माता इस व्रत को सबसे पहले की तथा उनके पिता राजा हिमांचल द्वारा नारद ऋषि के अनुसार भगवान विष्णु से पार्वती का विवाह करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किए, राजा हिमांचल ने ऋषि राज नारद जी को सम्मान प्रदान कर उन्हें विदा करते हुए स्वीकार किया कि मैं अपने पुत्री का विवाह भगवान विष्णु से करूंगा जैसे ही माता पार्वती को यह जानकारी मिली अपने सखियों के घर जाकर पार्वती ने कहा – “जन्म जन्म का रगर हमारी ,वरणौ शिव न त रह हूं कुमारी” इस संकल्प के साथ माता पार्वती ने केवल भगवान शिव से विवाह को स्वीकार करते हुए घनघोर जंगल में चली गई इसलिए इस व्रत का नाम हरितालिका रखा गया इस प्रकार माघ मासे जले मग्ना बैसाखे चाग्नि सेवनी, माघ के महीने में जल में कंठ तक डूब कर तपस्या किया निर्जला रहते रहते आम के सूखे पत्तों को खाना छोड़ दी तदनुसार इनका नाम अपर्णा हो गया सनातन धर्म ही एक ऐसा धर्म है जहां पर सबके कल्याण की बात की जाती है तथा दूसरे की कुशलता के लिए व्रत-जप-तपादि किया जाता है। यह भारतीय महिलाओं के अतिरिक्त विश्व में और कहीं नहीं होता था परंतु अब हरितालिकाव्रत को तीज को विश्व के कई देशों में इसका शुभारम्भ हो चुका है। आचार्य श्री ने बताया कि अब इंग्लैंड आयरलैंड दुबई कोरिया जर्मनी नेपाल इत्यादि देशों में शुरू हुआ है। यह शिव और पार्वती से संबंधित व्रत है। सनातन धर्म में गृहस्थ जीवन को सुचारु रूप से चलाने के लिए तथा अखण्ड सौभाग्य के लिए विशेषत: शिव -पार्वती पूजन व्रत से अखण्ड सौभाग्यवतीभवः का वरदान प्राप्त होता है।
“भाद्रस्य कजली कृष्णा शुक्ला च हरितालिका।”
के अनुसार भाद्र शुक्ल ततीया को ही हरितालिका (तीज) का व्रत किया जाता है। यह एक निर्जला व्रत है। इसमें आचमनी को छोड़कर एक बूंद जल भी ग्रहण नहीं करने का विधान है। यह अहोरात्र का सर्वाधिक कठिन तपस्या का व्रत है। यह द्वितीया युक्त तृतीया में नहीं किया जाता है। तृतीया यदि चतुर्थी युक्त हो तो उसमें यह व्रत करना चाहिए। द्वितीया पितामह की तिथि होती है और चतुर्थी पुत्र की तिथि है। अत: द्वितीया युक्त तृतीया का निषेध और चतुर्थी युक्त तृतीया का योग श्रेष्ठ होता है। इस वर्ष 09 सितम्बर भाद्रपद शुक्ल हस्तनक्षत्र युक्त तृतीया गुरुबार को पूंजन के लिए पुरा दिन मुहूर्त है, लेकिन बिशेषकर प्रदोश का समय सर्वोत्तम होगा। केला स्तंभ छोटी चौकी समस्त ऋतुफल खेल सेव अमरूद सौभाग्यप्रद वस्त्र चूड़ी बिंदी सिंदूर लहठी इत्यादि षोडशोपचार पूजन यथा शक्ति जागरण पतिव्रत पति सहित समस्त परिवार में आनन्दमयी वेला में पूजन करते हुये व्रत धारण करना है। व्रत का पारण अगले दिन 10 सितम्बर शुक्रवार को प्रात: सूर्योदय के उपरांत भगवान शिव पार्वती का पुनः पूजन विसर्जन दानपुण्य करते हुये मध्याह्न के पहले होना चाहिये।
आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी
ज्योतिषाचार्य
मो. – 8210379212
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