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अफसरों की पहुंच जनता तक हो, बंद कमरे में काम करने का कल्चर ठीक नहीं, बोले केंद्रीय मंत्री


Bharat Varta desk:: केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहां है कि नौकरशाहों के लिए बंद कमरे स्थानों में काम करने की संस्कृति देश के लिए ठीक नहीं है। जरूरतमंदों और गरीबों की उन तक पहुंच होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश में प्रशासनिक दृष्टिकोण तेजी से बदल रहा है। तेजी से सामाजिक-आर्थिक प्रगति, शहरीकरण और नए तकनीकी हस्तक्षेपों के कारण नौकर साहू के लिए नई भूमिका है और जिम्मेदारियां उभर रही हैं। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए), मसूरी में आईएएस पेशेवर पाठ्यक्रम चरण दो (2019 बैच) के समापन समारोह को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि इन परिवर्तनों को आत्मसात करने, इनके हिसाब से खुद को ढालने के लिए अफसरों को काम करना चाहिए।

बंद कमरे में लोगों से मिलने से कतराते हैं अक्सर
केंद्रीय मंत्री ने जो सवाल उठाए हैं वह आज की तारीख में बहुत ही प्रासंगिक हैं। इस देश में डीएम, एसपी से लेकर ऊपर तक के जितने भी अधिकारी हैं वे न केवल बंद कमरों में बैठते हैं बल्कि आम लोगों से मिलने में भी कतराते हैं। ज्यादातर अधिकारी ऐसी जगह बैठते हैं जहां कई कमरों और सुरक्षा घेरों से होकर जाना पड़ता है। गांव का आदमी उन तक पहुंचने के पहले ही इतना डर जाता है कि वह अपनी बात नहीं कह पाता है। अफसरों का मूल पदनाम लोकसेवक है यानी जनता के सेवक। लेकिन भारतीय लोकतंत्र में नौकरशाह जनता के सेवक की भूमिका नहीं निभा रहे हैं। वह सामंती व्यवस्था के प्रतीक बन गए हैं। कई अधिकारियों ने आम जनता के मिलने के लिए सप्ताह में एक या दो दिनों का समय कार्यालय के दीवाल पर लिखवा दिया है मगर उस दिन भी वह जानबूझकर कार्यालय में नहीं रहते हैं। केंद्रीय मंत्री ने जो बातें कहीं हैं उस पर भारत सरकार को गंभीरता से विचार करनी चाहिए। इन अधिकारियों को खुली जगह में बैठने की व्यवस्था होनी चाहिए। जिस तरह प्रधानमंत्री ने देश में अफसरों और मंत्रियों की गाड़ी में लाल पीली बत्ती लगाने की व्यवस्था को खत्म किया है उसी तरह राजशाही चेंबर में अफसरों के बैठने की व्यवस्था खत्म होनी चाहिए। तभी वह जनता के प्रति जिम्मेदार बन सकेंगे।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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