NEWSNLIVE DESK: बिहार में चुनावी रण शुरू हो चुका है। एक तरफ भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए है और उसका मुकाबला महागठबंधन से है, जिसमें राजद और कांग्रेस के साथ-साथ सभी वामदल शामिल हैं। हकीकत यह है कि प्रदेश में वोटों का बिखराव रोकने और एनडीए को हराने के लिए ये सभी दल एक छतरी के नीचे आ गए हैं। ऐसे में महागठबंधन की पहली रैली में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव एक मंच पर नजर आए, लेकिन पिछले साल लोकसभा चुनाव में मोदी विरोध का चेहरा बने कन्हैया कुमार इन सभाओं में नहीं दिखे। दरअसल, कन्हैया बिहार चुनाव में सीपीआई के स्टार प्रचारक हैं, लेकिन महागठबंधन के दल ही उनसे परहेज कर रहे हैं और चुनावी मंच पर भी उनकी आवाज सुनाई नहीं दे रही है।
राजद प्रवक्ता ने कहा- सब एकजुट हैं।
इस मसले पर सीपीआई (माले) के मीडिया प्रभारी परवेज ने कहा कि राजद प्रदेश और महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है। साथ ही, वह सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव भी लड़ रही है। ऐसे में उसके नेता का केंद्र में ज्यादा बने रहना स्वाभाविक है। कोई किसी से परहेज नहीं कर रहा। सभी अपनी-अपनी जगह पर चुनावी तैयारियों में लगे हैं। कन्हैया कुमार के साथ भी ऐसा ही है। उन्होंने 23 अक्टूबर को बेगूसराय में चुनावी सभा की थी।’
कन्हैया की गैरमौजूदगी पर कई सवाल?
चुनाव के मुख्य समर में कन्हैया कुमार का मंच से नदारद रहना बड़ा सवाल उठाता है। दरअसल, पिछले लोकसभा चुनाव के अनुभव के आधार पर आम लोगों के बीच चर्चा है कि महागठबंधन के बड़े दल (राजद-कांग्रेस) कन्हैया कुमार को पर्दे के पीछे या किसी क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रखना चाहते हैं। इन दलों का मानना है कि कन्हैया कुमार कुशल वक्ता हैं और वो अपनी बातों के जरिये आम लोगों से अच्छा संवाद बना लेते हैं। महागठबंधन के बड़े दलों के नेता उनके इस कौशल से परिचित भी हैं।
लोकसभा चुनाव में छा गए थे कन्हैया कुमार
गौरतलब है कि साल 2019 के लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और लहर के बीच कन्हैया कुमार ने बेगूसराय में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई थी। उस वक्त कन्हैया की छवि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में बनी थी। उस वक्त सीपीआई प्रत्याशी कन्हैया के खिलाफ राजद भी मैदान में था।
क्या तेजस्वी की वजह से साइडलाइन हैं कन्हैया?
अहम बात यह है कि बिहार चुनाव में हालात बदल गए हैं। एनडीए को रोकने के लिए वामदल के सभी घटक एक हुए हैं और उन्होंने तेजस्वी यादव को अपना नेता भी मान लिया है। ऐसे में रोजाना हो रही चुनावी सभाओं से कन्हैया का नदारद रहना इस बात की ओर इशारा करता है कि तेजस्वी को कन्हैया आज भी स्वीकार्य नहीं हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कन्हैया का सवर्ण जाति का होना और उनकी प्रगतिशील सोच तेजस्वी के भय का सबसे बड़ा कारण हो सकती है।
इन तमाम मतभेदों उपेक्षाओं के बीच कन्हैया कुमार अपनी पार्टी सीपीआई के लिए 27 और 29 अक्टूबर को चुनावी सभा करेंगे।
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