पितृ तर्पण तिथि एवं महत्व, जानिए आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी से

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आपसबों से अनुरोध है कि समय और साधन निकालकर अपने पितरों का श्राद्ध, तर्पण अवश्य करना चाहिये। आप स्वयं या ब्राह्मण द्वारा अपने देश काल लोकमत के हिसाब से पितरों की कृपा पा सकते हैं। आगे मैं आपको पितृ दोष संबंधित सहज सरल उपाय भी बताऊंगा जिसको करके आप अपने पितृ ऋण से मुक्त होने के लिये देव ऋषि पितृ तर्पण अवश्य करना चाहिए। पितृपक्ष में तर्पण के उपरांत देवताओं का पूजा अवश्य करें।
श्राद्ध तिथि निम्नवत है:

प्रतिपदा श्राद्ध -21 सितंबर, 2021 दिन मंगलवार
द्वितीया श्राद्ध – 22 सितंबर, 2021, दिन बुधवार
तृतीया श्राद्ध – 23 सितंबर, 2021 दिन गुरुवार
चतुर्थी श्राद्ध – 24 सितंबर, 2021 दिन शुक्रवार
पंचमी श्राद्ध – 25 सितंबर, 2021दिन शनिवार
षष्ठी श्राद्ध – 27 सितंबर, 2021 दिन सोमवार
सप्तमी श्राद्ध – 28 सितंबर, 2021 दिन मंगलवार
अष्टमी श्राद्ध – 29 सितंबर, 2021 दिन बुधवार
नवमी श्राद्ध – 30 सितंबर, 2021 दिन गुरुवार (मातृ नवमी)
दशमी श्राद्ध – 01अक्टूबर, 2021 दिन, शुक्रवार
एकादशी श्राद्ध -02अक्टूबर,2021, दिन शनिवार
द्वादशी श्राद्ध – 03 अक्टूबर,2021, दिन रविवार
त्रयोदशी श्राद्ध – 04 अक्टूबर, 2021, दिन सोमवार
चतुदर्शी श्राद्ध – 05 अक्टूबर, 2021, दिन मंगलवार
पितृ अमावस्या – 06अक्टूबर, 2021,दिन बुधवार पितृ विर्सजन

विशेष:- किसी कारणवश तिथि विशेष पर श्राद्ध न कर पाने अथवा पिता की मृत्यु की तिथि की जानकारी न होने के कारण उन सभी पितरो का श्राद्ध पितृ पक्ष की अमावस्या को किया चाहिए। और ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए। औरंगजेब ने अपने पिता शाहजहाँ को कैद कर दिया था, तब शाहजहाँ ने अपने बेटे को खत लिखा था- “धन्य हैं हिन्दू जो अपने मृतक माता-पिता को भी खीर और हलुए-पूरी से तृप्त करते हैं और तू जिन्दे बाप को भी एक पानी की मटकी तक नहीं दे सकता? तुझसे तो वे हिन्दू अच्छे, जो मृतक माता-पिता की भी सेवा कर लेते हैं।” गरुड़ पुराण में कहा गया है-
कुर्वीत समये श्राद्धं कुले कश्चिन्न सीदति।
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते।।
देवताभ्यः पितृणां हि पूर्वमाप्यायनं शुभम्।
समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा करके मनुष्य आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग, कीर्ति, पुष्टि, बल, श्री, पशु, सुख और धन-धान्य प्राप्त करता है। देवकार्य से भी पितृकार्य का विशेष महत्त्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है। पितृपक्ष में रोज भगवद्गीता के सातवें अध्याय का पाठ और 1 माला द्वादशाक्षर मंत्र “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करना कराना चाहिए और उस पाठ एवं माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिये।

आचार्य मंकेश्वर नाथ तिवारी
मो. 8210379212

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