
कभी-कभी एक छोटी-सी बात भी किसी की खुशी के लिए बड़ा सबब बन जाती है। ऐसी ही कहानी है एक गरीब की, जिसकी बकरी चोरी हो गयी। वो खास बकरी थी, जो दहेज में मिली थी। अब जानिए कि कैसे एक पुलिस अधिकारी की एक छोटी सी कोशिश ने उस गरीब के चेहरे पर मुस्कान ला दी
इस दिलचस्प घटना के बारे में बताते हैं वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एवं वर्तमान में बिहार सिविल डिफेंस के डीजीपी अरविंद पांडेय…
यह बात उस समय की है जब मैं सहायक पुलिस अधीक्षक, रांची के पद पर पदस्थापित था। मेरे पास एक दिन हिंदपीढ़ी के एक सज्जन आए और उन्होंने कहा कि उनके बेटे को दहेज में एक बकरी मिली थी और उस बकरी को वंशीचौक के फलाना आदमी ने चुरा लिया है। जब उन्हें पता चला और वे उसके पास गए और अपनी बकरी वापस मांगीं तो बकरी अपहर्ता ने कहा कि नहीं यह तो मेरी बकरी है। अब परेशानी ये थी कि जिसने उन सज्जन की बकरी ले ली थी वह और चुराने वाले सज्जन, दोनों कई बकरियां पाले हुए थे। इसलिए बकरी चुराने वाले व्यक्ति ने दावा कर दिया वह उसकी ही बकरी है। उन सज्जन की आयु लगभग 70 वर्ष रही होगी।
मैंने थानाध्यक्ष को फोन किया और उनका और बकरी अपहर्ता का पूरा नाम पता बताते हुए कहा कि इनके बेटे के दहेज में मिली हुई बकरी शाम तक दिलवाकर मुझे सूचित कीजिए। जो सजन मेरे पास आए थे उनको मैंने कहा कि शाम तक आपको आपकी बकरी मिल जाएगी। आप जाइए। वे सज्जन लौट गए और जाकर उन्होंने अपने मोहल्ले में भी कह दिया कि मैं अरविंद पांडे के पास गया था और उसने कहा है कि शाम तक मेरी बकरी मिल जाएगी। यह बात जिसने उनकी बकरी चुराकर अपने घर में रख ली थी उसे भी मालूम हो गई। यह बात मालूम होते ही वह दौड़ा-दौड़ा गया और जिसकी बकरी का अपहरण कर लिया था उन्हें वापस कर दिया और कहा कि जाकर अरविंद पांडे को कह दो कि बकरी मिल गई, नहीं तो हम फंस जाएंगे।
वे सज्जन शाम के पहले ही फिर मेरे पास आए। उसवक्त मैं कार्यालय में बैठा हुआ था। उन्होंने बताया कि बाबू , मेरी बकरी मिल गई है। जो बकरी ले गया था वही दे गया है। अब आप उसको कुछ मत करिएगा। मैंने कहा,ठीक है धन्यवाद। उन्हें मैंने प्रणाम किया और वे फिर मुस्कुराते हुए वापस चले गए।
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इस घटना का सारतत्त्व यह है कि पुलिस के कर्तव्यों में सिर्फ बड़े अपराधों का अनुसंधान ही नहीं होता, बल्कि कभी-कभी सामान्य लोगों की दृष्टि में बहुत छोटी-सी चोरी की घटना किसी गरीब के लिए बहुत बड़ी दुर्घटना जैसी होती है। इसलिए जिन मामलों को छोटा समझा जाता है उन मामलों में भी पुलिस को अपनी कानूनी और सामाजिक शक्ति का प्रयोग करते हुए आम लोगों की सेवा करनी चाहिए।
इस तरह दहेज की बकरी सही सलामत मिल गयी।
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