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किस्मत का खेल: ‘बाबा का ढाबा’ लौट के उसी जगह पर आया जहां से हुआ था मशहूर

Bharat Varta Desk : साल 2020 अक्टूबर का महीना अचानक एक दिन ‘बाबा का ढाबा’ हर तरफ छा गया। सोशल मीडिया पर दिल्ली के मालवीय नगर में चल रहे इस ढाबे की चर्चा थी। इसे चलाने वाले बुजुर्ग दंपत्ति कांता प्रसाद और बादामी देवी की चर्चा थी। उनका दर्द देखकर उन्होंने मदद के लिए हाथ बढ़ाया और ‘बाबा का ढाबा’ जल्द ही एक रेस्टोरेंट में शिफ्ट हो गया। अब खबर है कि ‘बाबा का ढाबा’ फिर से उसी जगह पहुंच गया है जहां से यह सुर्खियों में आया था।

कांता प्रसाद ने ग्राहकों की कमी के चलते रेस्टोरेंट को बंद कर दिया है। बताया जाता है कि फरवरी में ही ढाबे को बंद कर दिया गया था। बुजुर्ग दंपति का वीडियो यूट्यूब पर वायरल होने के बाद बिक्री में 10 गुना उछाल आया, जो कुछ ही महीने बाद गिर गया। कांता प्रसाद ने बताया, ”कोरोना लॉकडाउन की वजह से हमारा कारोबार चौपट हो गया। दैनिक बिक्री 3500 रुपये से घटकर 1000 रुपये हो गई। आय आठ सदस्यों के परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त नहीं थी।”

कांता प्रसाद ने बताया कि उन्होंने रेस्टोरेंट में करीब ₹5 लाख का निवेश किया था। तीन लोगों को काम पर रखा। मासिक खर्च करीब एक लाख रुपये था। किराए के लिए ₹35,000, तीन कर्मचारियों के वेतन के लिए ₹36,000 और बिजली, पानी के बिल और खाद्य पदार्थों की खरीद के लिए ₹15,000। लेकिन औसत मासिक बिक्री कभी भी 40,000 रुपये से अधिक नहीं हुई। इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा और वे आखिरकार इस नतीजे पर पहुंचे कि रेस्टोरेंट खोलना गलत फैसला था।

गौरतलब है कि इस रेस्टोरेंट की शुरुआत पिछले साल दिसंबर में बड़ी धूमधाम से की गई थी। यह उस जगह के पास शुरू किया गया था जहां प्रसाद का ढाबा पहले से चल रहा था। इसकी शुरुआत बढ़िया फर्नीचर, सीसीटीवी कैमरा, स्टाफ समेत कई तरह की सुविधाओं से हुई। उस समय 80 वर्षीय प्रसाद ने कहा था, “हम बहुत खुश हैं, भगवान ने हमें आशीर्वाद दिया है। मैं लोगों को उनकी मदद के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं, मैं उनसे मेरे रेस्तरां में आने का आग्रह करता हूं। हम यहां भारतीय और चीनी खाना बनाएंगे।”

लेकिन कुछ ही महीनों में यह उपक्रम असफल साबित हुआ। प्रसाद ने इसके लिए तुशांत अदलखा नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा है, ”कुल 5 लाख रुपये के निवेश में से हमने रेस्टोरेंट बंद होने के बाद कुर्सियों, बर्तनों और खाना पकाने की मशीनों की बिक्री से सिर्फ 36 हजार रुपये ही वसूले।” हालांकि, अदलखा ने आरोपों से इनकार किया है और इसके लिए प्रसाद और उनके बेटों को दोषी ठहराया है। वे कहते हैं, “रेस्तरां शुरू करने से लेकर ग्राहकों को ऑर्डर करने और भोजन की होम डिलीवरी तक, हमने सब कुछ किया। इसके अलावा, आप और क्या कर सकते थे प्रसाद के दो बेटे रेस्त्रां को मैनेज करते थे, लेकिन वे काउंटर पर कम ही रुकते थे। दोनों होम डिलीवरी के ऑर्डर को पूरा करने में नाकाम रहे।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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