5 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ था RSS, स्थापना दिवस पर पढ़िए रोचक कहानी

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Bharat Varta Desk : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के लिए दशहरा साल का सबसे बड़ा दिन होता है। संघ के लिए इस दिन के खास होने के पीछे कई वजह है। सबसे बड़ी वजह है कि साल 1925 में दशहरे के दिन ही नागपुर में संघ की स्थापना हुई थी। इसकी स्थापना डा. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। हालांकि, संघ अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता है। इसके बदले संघ की तरफ से विजयदशमी उत्सव मनाया जाता है। इस दिन संघ के नागपुर मुख्यालय समेत देशभर की शाखाओं में शस्त्र पूजा की जाती है। इसके साथ ही शक्ति की उपासना भी की जाती है। इसके अलावा देश के अलग-अलह हिस्सों में पथ संचलन निकलते हैं।

स्थापना दिवस नहीं, विजयादशमी पर शक्ति की उपासना करता है संघ : अनिल ठाकुर

संघ के बिहार-झारखंड क्षेत्र संपर्क प्रमुख अनिल ठाकुर ने विजयादशमी उत्सव समारोह के अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में स्वयंसेवकों एवं समाज के लोगों को संबोधित करते हुए संघ द्वारा अपना स्थापना दिवस नहीं मनाए जाने की वजह बताया। उन्होंने कहा कि विजयदशमी के दिन 1925 में संघ की स्थापना होने के बाद भी आरएसएस अपना स्थापना दिवस नहीं मनाता। वह विजयदशमी उत्सव मनाता है और उसमें शक्ति की उपासना करता है। स्थापना के एक वर्ष बाद आरएसएस का नामकरण हुआ था। संघ के संस्थापक डा. केशव बलिराम हेडगेवार ने कहा था कि हम जन्म दिवस मनाने के लिए संघ की स्थापना नहीं कर रहे हैं। हम शक्ति की उपासना के लिए संघ की स्थापना कर रहे हैं। हमें काम अपना प्रारंभ करना है। संघ ने 100 वर्ष पूरे होने पर भी कोई बड़ा कार्यक्रम करने का तय नहीं किया है, पूरे देश में शाखा विस्तार का लक्ष्य रखा है।

File Photo : अनिल ठाकुर

दशहरा कार्यक्रम में पहली बार महिला अतिथि

संघ प्रमुख का उद्बोधन पर देश की नजर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के बाद से हर साल नागपुर के रेशमाबाग मैदान में संघ दशहरे पर कार्यक्रम का आयोजन करता आया है। संघ का सलाना कार्यक्रम इस बार इस मायने में भी खास रहा है कि पहली बार संघ ने महिला को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया। इस वजह से संघ के कार्यक्रम को लेकर खासी चर्चा है। साल 1925 के बाद से हर वर्ष इस कार्यक्रम में कोई न कोई पुरुष मुख्य अतिथि शामिल होता आया है। लेकिन इस साल संघ ने अपनी परिपाटी को बदल दिया है। लिहाजा दशहरे पर होने वाले कार्यक्रम को संबोधित करने के लिए संघ ने दो बार एवरेस्ट पर्वत को फतह करने वाली पहली महिला पर्वतारोही संतोष यादव को आमंत्रित किया। कार्यक्रम में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने शस्त्र पूजा किया। मोहन भागवत ने स्वयंसेवकों व आम लोगों को संबोधित किया। विजयदशमी के दिन होने वाले संघ के इस कार्यक्रम में सरसंघचालक मोहन भागवत का उद्बोधन अहम माना जाता है। जिस पर देश की निगाह होती है। दरअसल, इस उद्बोधन के जरिए अगले एक साल के लिए संघ प्रमुख देश के हालात पर अपनी राय व्यक्त करते हैं। संघ की स्थापना दिवस पर होने वाले इस भाषण पर राजनीतिक विश्लेषकों की भी निगाहें टिकीं होती हैं।

पर्वतारोही संतोष यादव

कोरोना महामारी की वजह से पिछले दो साल से संघ ने अपना दशहरा कार्यक्रम आयोजित नहीं किया था। विजयदशमी के उत्सव में संघ की तरफ से अलग-अलग क्षेत्रों के व्यक्तियों को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाने की पुरानी परंपरा है। संघ के कार्यक्रम में कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के शामिल होने पर भी खूब चर्चा हुई थी। जानकारों का कहना है कि संघ की तरफ से अपनी विचारधारा के विपरीत लोगों को बुलाकर यह संदेश देने का प्रयास किया जाता है कि वह एक उदार, सहिष्णु और प्रगतिशील संगठन है।

ऐसे बनी थी संघ के गठन की योजना

पहली शाखा पांच स्‍वयंसेवकों के साथ हुई थी शुरू

दुनिया के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना डा. केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी। भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ 27 सितंबर 1925 को विजयदशमी के दिन आरएसएस की स्थापना की गई थी। इस साल विजयदशमी के दिन संघ अपने 97 साल पूरे कर लेगा और 2025 में ये संगठन 100 साल का हो जाएगा। नागपुर के अखाड़ों से तैयार हुआ संघ मौजूदा समय में विराट रूप ले चुका है।

संघ के प्रथम सरसंघचालक हेडगेवार ने अपने घर पर 17 लोगों के साथ गोष्ठी में संघ के गठन की योजना बनाई। इस बैठक में हेडगेवार के साथ विश्वनाथ केलकर, भाऊजी कावरे, अण्णा साहने, बालाजी हुद्दार, बापूराव भेदी आदि मौजूद थे। संघ का क्या नाम होगा, क्या क्रियाकलाप होंगे सब कुछ समय के साथ धीरे-धीरे तय होता गया। उस वक्त हिंदुओं को सिर्फ संगठित करने का विचार था। यहां तक कि संघ का नामकरण ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ भी 17 अप्रैल 1926 को हुआ। इसी दिन हेडगेवार को सर्वसम्मति से संघ प्रमुख चुना गया, लेकिन सरसंघचालक वे नवंबर 1929 में बनाए गए।

फ‍िर विजयदशमी यानी दशहरे के दिन ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की नींव रखी गई थी। दिन था 27 सितंबर, 1925 जब दशहरे के मौके पर मुंबई के मोहिते के बाड़े नामक जगह पर डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने आरएसएस की नींव रखी थी। ये आरएसएस की पहली शाखा थी जो संघ के पांच स्‍वयंसेवकों के साथ शुरू हुई थी। नन्हें कदम से शुरू हुई संघ की यात्रा समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पहुंची है, न केवल पहुंची है, बल्कि उसने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। बीज से वटवृक्ष बनने की संघ की यात्रा आसान कदापि नहीं रही है। 1925 में जिस जमीन पर संघ का बीज बोया गया था, वह उपजाऊ कतई नहीं थी। जिस वातावरण में बीज का अंकुरण होना था, वह भी अनुकूल नहीं था। किंतु, डा. हेडगेवार को उम्मीद थी कि भले ही जमीन ऊपर से बंजर दिख रही है, परंतु उसके भीतर जीवन है।
आज पूरे भारत में एक लाख के आसपास संघ की शाखाएं हैं। संघ का नेटवर्क अब 40 से अधिक देशों में पहुंच चुका है। विदेशों में संघ की शाखाएं ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ के नाम से लगती हैं। संघ का यह नेटवर्क अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा मिडल ईस्ट के देशों में भी है। विदेशों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जगह हिंदू स्वयंसेवक संघ नाम इस्तेमाल पूरी दुनिया के हिंदुओं को जोड़ने के लिए किया जा रहा है। भारत के बाद नेपाल में संघ की सबसे ज्यादा शाखाएं लगती हैं।

ऐसे हुआ था संघ का नामकरण

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यह नाम अस्तित्व में आने से पहले विचार मंथन हुआ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जरीपटका मंडल और भारतोद्वारक मंडल इन तीन नामों पर विचार हुआ। बाकायदा वोटिंग हुई नाम विचार के लिए बैठक में मौजूद 26 सदस्यों में से 20 सदस्यों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपना मत दिया, जिसके बाद आरएसएस अस्तित्व में आया। ‘नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे’ प्रार्थना के साथ पिछले कई दशकों से लगातार देश के कोने कोने में संघ की शाखाएं लग रही हैं। हेडगेवार ने व्यायामशालाएं या अखाड़ों के माध्यम से संघ कार्य को आगे बढ़ाया। स्वस्थ और सुगठित स्वयंसेवक होना उनकी कल्पना में था।

संघ को प्रतिबंध का भी करना पड़ा सामना

संघ को माना जाता है भाजपा का वैचारिक संरक्षक

इस संगठन को कई बार प्रतिबंधों का भी सामना भी करना पड़ चुका है। पिछले 97 वर्षों में, आरएसएस पर तीन बार प्रतिबंध लगाया गया है – 1948, 1975 और 1992 में। 1975 में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाधी के शासनकाल में जब देश में आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ प्रतिबंध लगा दिया गया। आपातकाल हटने के बाद जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हुआ और केन्द्र में मोरारजी देसाई की मिलीजुली सरकार बनी। तब से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया और इसी से फलस्वरूप भाजपा जैसे राजनैतिक दल को जीवन मिला जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा जाता है। संघ है तो गैर-राजनीतिक स्वंयसेवी संगठन, लेकिन इसे भाजपा का वैचारिक संरक्षक भी माना जाता है, जो देश की सबसे ताकतवर राजनीतिक पार्टी बन चुकी है, इसके शीर्ष स्तर पर मूलत: संघ से आए कार्यकर्ता ही हैं जिनमें स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल हैं जो संघ में लंबे समय तक पूर्णकालिक कार्यकर्ता अर्थात प्रचारक के रूप में काम करते रहे।

File Photo : नरेंद्र मोदी

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