साहित्य संसार

कहां चुके चौहान ? रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’

अप्प दीपो भव-11


(दिलीप कुमार कवि,लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)

सफलता के लिए हम सभी प्रयास करते हैं। कुछ लोग पूरे मन से प्रयास करते हैं तो कुछ लोग चाह कर भी पूरा जोर नहीं लगा पाते हैं। कई बार पूर्ण प्रयास करने पर भी सफलता हासिल नहीं होती हम मंजिल पर पहुंचते-पहुंचते रह जाते हैं। जो लक्ष्य निर्धारित किया होता है, उसे प्राप्त नहीं कर पाते। जाहिर है, ऐसे में निराशा होती है। पूर्ण प्रयास के बाद भी वांछित सफलता न पाने की इस निराशा से निकलना जरूरी है। ऐसे समय में आत्मचिंतन करना जरूरी है। सफलता पाने के मार्ग में कहां पर चूक हुई, इसका संपूर्ण विश्लेषण करें। अपनी पुस्तक माइंड मास्टर में शतरंज के ग्रैंड मास्टर और विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद लिखते हैं कि जब कभी उन्हें सफलता नहीं मिलती तो वह साफ-साफ अक्षरों में खेल के एक-एक चरण को लिखते और खेल में जहां बड़ी गलती हुई होती उसे दो बार अंडरलाइन करते। धीरे-धीरे यह आदत जीवन का हिस्सा बन गई। इससे उनके खेल में काफी सुधार आया। जब कभी खेल में निराशा हासिल होती तो वह स्वयं ही अपने आलोचक बन जाते और एक आलोचक के तौर पर वह अपने खेल की विवेचना निर्मम तरीके से करते। अपने प्रति प्रदर्शित की गई यह कठोरता बाद में उनकी सफलता का माध्यम बना। उन्होंने अपने समकालीन सभी धुरंधर शतरंज खिलाड़ियों को मात दी।
यह जरूरी नहीं कि जब भी हम प्रयास करें, हमें सफलता हासिल हो ही। सफलता न मिली, कोई बात नहीं। मैदान में घुड़सवारी करने वाले लोग ही गिरा करते हैं।
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले।।

गिरने वाले लोग आने वाले कल में चैंपियन बनने की क्षमता रखते हैं। लेकिन, उसके लिए अपना ही निर्मम आलोचक बनना जरूरी है। अपनी विफलता के कारणों को यदि हम डायरी में लिख लें तो वह बहुत ही अच्छा होता है। इस तरह से वह डायरी आपका सच्चा मित्र भी बन जाता है।

जीवन क्षेत्र में कई आलोचक हमें बिना प्रयास के भी मिल जाते हैं। सामान्य तौर पर हम आलोचना करने वालों से बच कर रहना चाहते हैं। आलोचकों पर नेगेटिविटी और पूर्वाग्रह से ग्रसित होने का आरोप भी लगाते हैं। यह प्रकृति ठीक नहीं। कबीर दास ने कहा है कि हमें अपने आलोचकों को अपने नजदीक ही रखना चाहिए-
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।

जो लोग अपनी असफलताओं के कारणों की सही विवेचना नहीं करते और दूसरों को भी निरपेक्ष भाव से विवेचना नहीं करने देते, वे अपने लिए गहरी खाई खोद रहे होते हैं। यह खाई आत्ममुग्धता रूपी कीचड़ से भरा होता है। इस प्रकार की गहरी खाई में फंसा व्यक्ति कभी भी सफलता के शिखर को प्राप्त नहीं कर सकता। इसके ठीक विपरीत असफलता के कारणों की जांच-परख करने और अपनी कमी को स्वीकार कर उसमें सुधार की इच्छा रखने वाले लोग सफलता के शिखर पर ध्वज फहराते हैं।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

Recent Posts

पीएमओ का नाम बदला,‘सेवा तीर्थ’कहलाएगा

Bharat varta Desk प्रधानमंत्री कार्यालय का नाम बदल गया है. अब इसे ‘सेवा तीर्थ’ के… Read More

15 hours ago

नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल : पटना में झलकी भारत की सांस्कृतिक-बौद्धिक विरासत

पटना, भारत वार्ता संवाददाता : बिहार की राजधानी पटना एक बार फिर साहित्य, संस्कृति और… Read More

1 day ago

प्रेम कुमार बिहार विधानसभा के नए अध्यक्ष होंगे

Bharat varta Desk गया के विधायक प्रेम कुमार बिहार विधानसभा के नए अध्यक्ष होंगे। ‌… Read More

2 days ago

बिहार में पांच आईएएस अधिकारी बदले, मिहिर कुमार सिंह होंगे नए विकास आयुक्त

Bharat varta Desk बिहार में एक बार फिर एनडीए सरकार बनने के बाद सीएम नीतीश… Read More

2 days ago

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में रेलवे की महत्वपूर्ण भूमिका: पीके मिश्रा

-रायबरेली रेल कोच कारखाना के जीएम ने पूर्व रेलवे के इतिहास की दी महत्वपूर्ण जानकारी-हावड़ा… Read More

3 days ago

30 नवंबर 2025 को पटना में ज्ञान और साहित्य का महोत्सव – नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल

पटना। बिहार की ऐतिहासिक और साहित्यिक पहचान को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के उद्देश्य… Read More

5 days ago