‘कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर’, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’

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अप्प दीपो भव-33

दिलीप कुमार (भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी, कवि, लेखक और मोटिवेशनल गुरु)


प्रकृति में अनेक काम ऐसे हैं जो निर्धारित समयावधि पूरा होने के बाद ही संपन्न होते हैं। बड़े काम को करने के लिए बड़ा हौसला और बड़ी योजना के साथ-साथ बड़ा धैर्य होना भी जरूरी है। अधीर होने से कई बार काम के बिगड़ने का खतरा उत्पन्न हो जाता है। उत्तेजना और दुश्चिंता से अधीरता का भाव उत्पन्न होता है। अति उत्साह में अधीर लोग बावले बन जाते हैं और बनता हुआ काम बिगड़ जाता है।
संत कवि पलटू दास जी ने धैर्य बनाये रखने को लेकर कितना सुंदर दोहा कहा है-
कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ।
समय पाय तरुवर फरै, केतिक सींचो नीर ।।

सारे काम उचित समय पर संपन्न होते हैं। चिंता करने की कोई बात नहीं है। समय आने पर पेड़ फल देते हैं। उतावले पल में ज्यादा पानी देने से पेड़ तुरंत फल नहीं देने लग जाते हैं। इसलिए पेड़ लगाने के बाद धैर्य के साथ उसकी देखरेख आवश्यक है। जल्दबाजी में ज्यादा पानी देने से पेड़ गल भी सकता है।
कबीर दास जी ने भी धीरज को जीवन का आधार बताते हुए एक दोहा कहा है-
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय ।।

यदि कोई माली पौधे में सौ घड़ा पानी भी डाल दे तब भी पौधा एक ही दिन में फल देने नहीं लग जाता है। माली धैर्य के साथ अपना कर्तव्य का पालन पूरे साल करता रहता है। मौसम आने पर ही पेड़ों में फल लगते हैं ।
हमारे जीवन में भी अनेक चीजें समय से होती है। कितना भी प्रयास कर दिया जाए, कितना घड़ा पानी पौधे में डाल दिया जाए, वसंत का आगमन समय पर होता है। पौधों में फूल समय पर लगते हैं और समय पर ही फल प्राप्त होते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद अंतिम परिणाम समय पर ही निकलता है। इसलिए हम सबको इंतजार की आदत होनी चाहिए। जो लोग इंतजार करने की जगह हड़बड़ी करते हैं, वह अपना काम बिगाड़ते हैं। ज्यादा अधीर होना हृदय की संकीर्णता और बालपन का लक्षण होता है। बाग में खेल रहे बच्चे बीज लगाते हैं और चाहते हैं कि कुछ ही घंटों में पौधा निकल आए। पौधा नहीं निकलता तो खोद-खोद कर बीज की जांच करते हैं। ऐसा करने से बीज नष्ट हो जाता है। बच्चे जल्दी पेड़ उगाने की लालसा में डाली काटकर लगा देते हैं। ऐसा करने से तुरंत हरा पेड़ तो दिखने लग जाता है, लेकिन वह पेड़ दीर्घजीवी नहीं होता। उसमें फल नहीं लगते। अधीरता में बच्चे पेड़ की उस डाली को भी उखाड़ फेंकते हैं। जब हमारे पास धैर्य नहीं होता है तो हम भी जरा सी देरी होने पर घबरा जाते हैं और मैदान छोड़कर भागने के फिराक में लग जाते हैं। अधीरता से शंका की उत्पत्ति भी होती है और हम पूरे मनोयोग के साथ काम की सफलता के लिए प्रयास नहीं कर पाते। एक काम करते हुए ध्यान अगले काम की ओर चला जाता है। फिर काम शुरू करना और उसे अधूरा छोड़कर दूसरे काम की ओर बढ़ जाना हमारी आदतों में शुमार हो जाता है। ऐसा हम जितना अधिक करते हैं, सफलता हमसे उतनी ही दूर चली जाती है। हमारा आत्मिक बल भी कमजोर होता है।
हम सभी जानते हैं कि रुई से वस्त्र बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है। रुई से पहले धागा बनता है और उसके बाद कपड़ा बनाया जाता है। कपड़े से वस्त्र बनाया जाता है। जल्दी सफलता पाने के लिए शॉर्टकट विधि अपनाने पर वांछित परिणाम नहीं निकलता है।
बड़ी कामयाबी के लिए चित्त को शांत रखना और संदेह को न पनपने देना जरूरी है। सकारात्मक भाव से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का सतत प्रयास करते रहना जरूरी है। समय आने पर अच्छा परिणाम अवश्य निकलेगा।

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