वीरों का आभूषण है क्षमा, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’
अप्प दीपो भव-27
-दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)
जन्म से मृत्यु तक की अपनी जीवन यात्रा में मनुष्य लगातार गलतियां करता चलता है। कई गलतियां अनेजाने में हो जाती हैं, तो कई बार परिस्थितियों का सही आकलन न कर पाने के कारण गलतियां हो जाती हैं। कुछ लोग जानबूझकर भी गलतियां करते हैं और कुछ लोग गलतियां पर गलतियां किए चले जाते हैं। सभी प्रकार की गलतियों का विश्लेषण आवश्यक है।
हम जब भी गलती करते हैं, तो चाहते हैं कि हमारी गलती के कारण यदि किसी का नुकसान हुआ हो या किसी के दिल को ठेस लगी हो, वह हमें माफ कर दे। इस प्रकार की चाहत में कोई गलत बात भी नहीं है। इस दुनिया में कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं है। फिर कोई भी व्यक्ति कुछ बात कहते समय या कोई कार्य करने के दौरान उससे जुड़े हर व्यक्ति के नजरिए से सोच नहीं पाता है। कई बार तो हम किसी का हित करना चाहते हैं, लेकिन हमारी गतिविधि से उसका अहित हो जाता है। ऐसे में हम क्षमा प्रार्थी होते हैं। हम चाहते हैं कि हमें क्षमा कर दिया जाए। जब हमें क्षमा प्राप्त हो जाती है तो हमें अत्यंत प्रसन्नता होती है।
क्षमा देने के मामले में हमारा व्यवहार उसी प्रकार का होना चाहिए, जैसा क्षमा मांगने के मामले में होता है। अपनी गलती पर पश्चाताप भाव से यदि कोई माफी मांगे, तो हमें खुद को उस व्यक्ति के स्थान पर रख कर देखना चाहिए और फिर उचित महसूस होने पर क्षमा कर देना चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें इस लोक में सम्मान और परलोक में उत्तम गति की प्राप्ति होती है।
क्षमा आत्म शुद्धि का मार्ग है। इसे वीरों का आभूषण भी कहा गया है। क्षमा कमजोरों की ताकत भी है –
क्षमा बलं अशक्तानां, शक्तानाम् भूषणम् क्षमा!
क्षमा वशीकृते लोके, क्षमया किम न साधयति!!
अर्थात क्षमा कमजोरों की ताकत और बलशालियों का आभूषण है। सारा संसार क्षमा से वश में किया जा सकता है। इससे सभी कार्य सिद्ध हो सकते हैं। क्षमा में बहुत ताकत होती है और इसका काफी व्यापक महत्व है।
एक दूसरे संस्कृत श्लोक में कहा गया है-
पुष्प कोटि समं स्तोत्रं, स्तोत्र कोटि समं जपः!
जप कोटि समं ध्यानम्, ध्यान कोटि समं क्षमा!!
यानी” एक करोड़ पुष्पों के समान एक स्रोत, एक करोड़ स्रोतों के समान एक जप, एक करोड़ जपों के बराबर एक ध्यान और एक करोड़ ध्यान के बराबर एक बार की क्षमा है।”
क्षमा मांगने और क्षमा कर देने वाले व्यक्तियों के हृदय कोष में आह्लाद भरा होता है। इससे मित्रता को मजबूती मिलती है और भय समाप्त होता है। जो मनुष्य अपनी गलती पर क्षमा मांग लेता है , उसका अहंकार समाप्त हो जाता है। दूसरी ओर जो मनुष्य मांगे जाने पर गलती करने वाले को क्षमा कर देता है, उसके संस्कारों में और निखार आ जाता है।
रहीम कवि का एक प्रसिद्ध दोहा है-
क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात!
का रहीम हरि का घट्यो जो भृगु मारी लात!!
अर्थात उद्दंडता करने वाले लोग हमेशा छोटे कह जाते हैं, जबकि क्षमा करने वाले लोग ही बड़े बनते हैं। ऋषि भृगु द्वारा लात मारे जाने के बावजूद भगवान विष्णु की महिमा घट नहीं गई थी। हिंदू परंपरा में इस घटना का जिक्र आता है। भगवान विष्णु के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए जब महर्षि भृगु ने उनके शरीर पर लात मारी तो भगवान विष्णु क्रोधित नहीं हुए। उन्होंने बड़े ही प्यार और सम्मान के साथ महर्षि भृगु से पूछा- हे संत- महात्मा, आपके पैरों को चोट तो नहीं लगी। महर्षि भृगु बहुत ही लज्जित हुए और भगवान विष्णु से माफी मांगी।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी अपने शत्रुओं को अपनी सद्भावना से लज्जित करने में विश्वास रखते थे। उन्होंने कहा था कि कोई यदि तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो उसके सामने दूसरा गाल भी रख दो। इस तरह शत्रु अपने कृत्य पर लज्जित होगा। शत्रुता को शत्रुता से नहीं मिलाया जा सकता। नफरत को मिटाने के लिए प्रेम के बीज लगाने ही होंगे। क्षमा कर देने से प्रेम का बीज लगाने हेतु उर्वरा भूमि का निर्माण होता है।
कुछ लोग क्षमा का संबंध कायरता से जोड़ देते हैं। क्षमा करने वाले लोगों को कायर समझने की भूल कर बैठते हैं। ऐसी सोच गलत है। क्षमा करने वाला व्यक्ति शक्तिशाली होता है। वह जानता है कि शक्तिशाली व्यक्ति से ही क्षमा मांगी जाती है और शक्तिशाली व्यक्ति को ही क्षमा का आभूषण शोभा देता है । राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी लिखा है-
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो!
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो!!
कुछ लोग सरलता और क्षमा कर देने की हमारी प्रवृत्ति को गलत ढंग से भी देखते हैं। श्रीराम कथा में एक प्रसंग है कि लाख अनुनय विनय करने के बाद भी समुद्र भगवान श्री राम की सेना को लंका जाने के लिए रास्ता नहीं दे रहा था। अंत में जब वह क्रोधित हो समुद्र को अपने बाणों से सोख लेने के लिए आतुर हुए तो समुद्र देव पधारे। उन्होंने विनीत भाव से भगवान श्रीराम को लंका जाने हेतु सेतु निर्माण की सलाह दी और साथ ही श्रीराम सेना के दो सदस्यों नल और नील की अद्भुत क्षमता के बारे में जानकारी दी, जिस पर पुल निर्माण का काम आसान हुआ। भगवान राम ने समुद्र को क्षमा कर दिया था।
हर प्रकार की कटुता से हमारा ही मन मैला होता है।शिकवा-शिकायतों से जीवन का माधुर्य समाप्त हो जाता है। स्वस्थ और सुंदर जीवन के लिए निर्मलता आवश्यक है। गलती के लिए क्षमा मांगना और दूसरों की गलती को क्षमा कर देना ही वह प्रोसेसिंग प्लांट है, जिससे गुजरने के बाद सभी प्रकार की कटुता और गलतियों का नाश हो जाता है। इससे जीवन रूपी दरिया में बहने वाला पानी पूरी तरह निर्मल हो जाता है।