अप्प दीपो भव-26
सकारात्मक सोच सफलता के शिखर पर ले जाता है। इसके विपरीत सोच में नकारात्मकता हमें असफलता के गर्त में धकेल देता है। जिस किसी ने भी सोच लिया कि दिया हुआ कार्य उससे संपन्न नहीं हो पाएगा, तो मान लीजिए कि वह व्यक्ति उस कार्य को संपन्न नहीं कर पाएगा। नकारात्मक सोच नाकामयाबी की कुंजी है। जिस किसी ने भी इस कुंजी को अपने गले में लटकाया, उसके लिए विफलता के सारे दरवाजे अपने आप खुलते चले गए। इस कुंजी का प्रयोग करने के लिए ज्यादा प्रयास करने की जरूरत ही नहीं होती। चाबी अपने आप काम करता रहता है और हम परेशान होते रहते हैं कि कामयाबी हमारी किस्मत में नहीं।
अपनी विफलता के लिए परिस्थितियों और साथ में रहे लोगों पर दोषारोपण करने में बहुत आनंद आता है। कुछ लोग हार का ठीकरा अपनी खराब किस्मत पर मढ़ देते हैं। अपनी विफलता का सही विश्लेषण न करते हुए यह मान लेना कि सफलता हमारी किस्मत में ही नहीं था, आसान है। पर इससे हमें नकारात्मकता से उबर पाने में मदद नहीं मिलती। सच तो यह है कि जिस किसी को नकारात्मक सोच से प्यार हो जाता है वह उसी में आनंद लेने लग जाता है। फिर वह ज्यादा प्रयास भी नहीं करता। हाथी को ही लीजिए। वह अपार शक्तिशाली होता है, लेकिन बचपन में जब उसकी ताकत कम होती है तो उसका मालिक उसके किसी एक पांव में जंजीर बांध देता है। प्रारंभ में बच्चा हाथी उस जंजीर को तोड़ने का प्रयास करता है। उस समय उसकी ताकत कम होती है वह जंजीर नहीं तोड़ पाता है। विफलता से उसके मन में नकारात्मक सोच घर कर जाता है। फिर वह जंजीर को ही अपनी नियति मान लेता है। हाथी बड़ा हो जाता है तो उसकी शक्ति कई गुना बढ़ जाती है। लेकिन वह नकारात्मक सोच से उबर नहीं पाता। वयस्क हाथी जो विशाल और ताकतवर होता है, को उसका मालिक यदि पतली रस्सी से भी बांधता है, तो वह उसे तोड़ने का प्रयास नहीं करता। बचपन में विकसित हुई भ्रांति को बड़ा होने पर भी वह सच मानता है कि रस्सी की ताकत उससे कई गुना अधिक है। वह रस्सी नहीं तोड़ सकता, लेकिन सच कुछ और होता है। नकारात्मक सोच हाथी को बदली हुई परिस्थितियों को स्वीकार करने नहीं देता। उसे नए प्रयास करने नहीं देता। हाथी पतली जंजीर में जकड़ कर गुलामी का रोना रोता रहता है। नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार और ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल कहते हैं- सोच वह छोटी सी चीज है, जो बड़ा अंतर पैदा करती है।
सोच में अंतर के कारण ही हाथी गुलाम होता है और बंदर प्रयासरत रहते हुए स्वतंत्र हवा में श्वास लेता है।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी एक कविता में कहा है-
छोटे मन से कोई
बड़ा नहीं होता
टूटे मन से कोई
खड़ा नहीं होता।
कवि द्वारका प्रसाद माहेश्वरी ने भी इस प्रचलित कहावत के आधार पर एक कविता लिखी है-
मन के हारे हार सदा रे
मन के जीते जीत
मत निराश हो यों
तू उठ, ओ मेरे मन के मीत।
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