साहित्य संसार

राहें अनेक पर मंजिल एक, रेल अधिकारी दिलीप कुमार का कॉलम ‘अप्प दीपो भव’

अप्प दीपो भव-19

-दिलीप कुमार (कवि, लेखक, मोटिवेशनल स्पीकर और भारतीय रेल यातायात सेवा के वरिष्ठ अधिकारी)

हमारी सोच का एक दायरा होता है। हम जितना जानते हैं उसी के आधार पर हमारी सोच का विकास होता है। ज्ञान की दुनिया विशाल है। सबसे बड़े समंदर से भी अधिक बड़ा। इस विशाल ज्ञान सागर का संभवतः चुल्लू भर ज्ञान भी हमारे पास नहीं होता। बहुत प्रयत्न करने के बाद हम अपने ज्ञान में थोड़ी वृद्धि कर सकते हैं, लेकिन उतनी वृद्धि मात्र से हमें संपूर्ण ब्रह्मांड का पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता।
सीखते रहना, अपनी जानकारियों के खजाने की श्रीवृद्धि करते रहना खुश रहने का एक महत्वपूर्ण जरिया है। किसी एक विषय के विविध पहलुओं को जानने से हमारा नजरिया बेहतर बनता है।
किसी भी स्थान पर पहुंचने के लिए अनेक रास्ते हो सकते हैं। ईश्वरीय सत्ता में विश्वास रखने वाले लोग सगुण मार्ग से भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं और निर्गुण मार्ग से भी। इसी तरह हम भक्ति मार्ग से प्रभु को प्राप्त कर सकते हैं तो ज्ञान मार्ग और कर्म मार्ग के माध्यम से भी। रास्ते अलग-अलग हो सकते हैं। अपने रास्ते को ही सही बताना हमारे दम्भ को बढ़ाता है।

विश्व के सर्वोच्च शिखर सागरमाथा को फतह करने के लिए पहले हम एक ही रास्ता जानते थे। प्रथम रास्ता हिमालय के दक्षिणी ओर से प्रारंभ होता है और शिखर तक जाता है। विश्व की सर्वोच्च चोटी पर पहली बार पहुंचने वाले एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे इसी रास्ते से गए थे। अधिकांश पर्वतारोही इसी रास्ते से माउंट एवरेस्ट पर पहुंचते हैं । बाद में चीन ने हिमालय के उत्तरी छोर से भी सागरमाथा यानी माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने का रास्ता खोज लिया। वह मार्ग अधिक दुर्गम है, लेकिन पर्वतारोहियों को वह मार्ग भी आकर्षित करता है। वर्तमान में नेपाल के रास्ते माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोहण की संख्या काफी अधिक हो गई है। ऐसे में अनेक लोग चीन के रास्ते माउंट एवरेस्ट तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। रास्ते अलग-अलग हैं पर मंजिल माउंट एवरेस्ट की एक ही है।

कैलाश मानसरोवर जाने के लिए भी पहले एक ही रास्ता था जो हिमाचल प्रदेश से होकर गुजरता था। बाद में सिक्किम के नाथू ला मार्ग से कैलाश मानसरोवर जाने का मार्ग तैयार किया गया। मंजिल एक ही है- कैलाश मानसरोवर। लेकिन भारत से वहां जाने के लिए अब दो रास्ते हैं। हमारे जीवन में भी ऐसा ही होता है। कई लोगों की मंजिल एक हो सकती है और वहां पर पहुंचने के कई अलग-अलग रास्ते भी हो सकते हैं। एक रास्ता थोड़ा सुगम और दूसरा थोड़ा दुर्गम हो सकता है। दुर्गम मात्र होने से कोई रास्ता गलत नहीं हो जाता। दुर्गम रास्तों पर चलने का अपना अलग ही आनंद है। दुर्गम रास्तों पर सामान्यतया भीड़ कम होती है। दुर्गम रास्तों के किनारे हम पेड़-पौधे और जीवों की नई प्रजातियों की पहचान करते हुए चल सकते हैं। दुर्गम रास्ते पर चलने से थोड़ा ज्यादा ज्ञान प्राप्त होता है। हम दुर्गम रास्ते पर चलें या सुगम रास्ते पर, यह हमारी अपनी मर्जी होती है। जो लोग हमारी सोच से इतर रास्ते पर चलते हैं, वह गलत नहीं हो जाते। जरूरी है कि हम अपने ज्ञान और सूचना के दायरे को बढ़ाते चलें। जब हम सीखने के लिए हरदम तैयार रहते हैं, जब हम ज्ञान की प्राप्ति के लिए अपने दरवाजों को खुला रखते हैं तो नई चीजें लगातार सीखते रहते हैं। जितना ज्यादा हम सीखते हैं, हमारी सोच का दायरा उतना ज्यादा विस्तृत होता चला जाता है। अपने ज्ञान के गागर को विस्तार देने से हमें दूसरों के विचारों को सम्मान देने की शक्ति मिलती है। ज्ञान की गहनता और विविधता हमें अनावश्यक बहसबाजी से बचाती है। इससे हमारी खुशियों में वृद्धि होती है।

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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