अप्प दीपो भव- 8
(कवि, लेखक और मोटिवेशनल स्पीकर दिलीप कुमार भारतीय रेल सेवा के वरिष्ठ अधिकारी हैं)
रात्रि में करीब 12 घंटे के उपवास के बाद सुबह का जलपान किया जाता है। देर से जागने के कारण बहुत सारे लोग काम पर जाने की हड़बड़ी में रहते हैं और सुबह के जलपान के साथ समझौता कर लेते हैं। यह समझौता हमारे स्वास्थ्य पर भारी पड़ता है। जलपान हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसलिए जलपान जरूर करना चाहिए।
प्रायः सुबह का जलपान हम अपने घर पर ही करते हैं। घर पर तैयार जलपान शुद्ध और ताजा होता है। उसमें भोजन के सभी अवयव जैसे कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, वसा, लवण पदार्थ और जल उचित मात्रा में उपलब्ध होते हैं। पूरे दिन के लिए आवश्यक कैलोरी की प्राप्ति हमें सुबह के जलपान से हो जाती है। जब हम अपने घर की रसोई में बनी अच्छी और पौष्टिक चीजें खाते हैं, तो उसका सकारात्मक असर हमारे शरीर पर पड़ता है। शरीर की पाचन क्रिया प्रणाली भोजन के पोषक तत्वों का अवशोषण कर उन्हें शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाती है, जिससे सभी अंगों को सक्रिय रहने के लिए आवश्यक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। विभिन्न शोधों से पता चला है कि सुबह संतुलित और पौष्टिक जलपान करने वाले लोगों का दिमाग ज्यादा बेहतर तरीके से काम करता है। ऐसे लोगों के बीमार पड़ने की संभावना भी 20 प्रतिशत तक कम हो जाती है। सुबह जलपान करने से शरीर की मांसपेशियां भी बेहतर रिस्पांस देती हैं।
घर से बाहर जाकर काम करने वाले लोगों के लिए सुबह का संतुलित और पौष्टिक जलपान किसी वरदान से कम नहीं है। सुबह का संतुलित जलपान उन्हें शरीर की ऊर्जा संबंधी आवश्यकताओं के प्रति निश्चिंत कर देता है, जिससे वह अपने काम पर ज्यादा बेहतर तरीके से ध्यान दे पाते हैं। जो लोग रात्रि में वसायुक्त भारी भोजन करते हैं, उनके मोटा होने की संभावना काफी ज्यादा रहती है। मोटापा अपने आप में कोई बीमारी तो नहीं, लेकिन कई बीमारियों का जनक जरूर है। सुबह भरपूर भोजन तथा रात्रि में हल्का भोजन करने वाले लोगों का बीएमआई संतुलित होता है।
वाग्भट्ट ऋषि ने दो ग्रंथ लिखे जिनका नाम “अष्टांगहृदयम और अष्टांगसंग्रहयम” है। इन दोनों पुस्तकों में निरोग जीवन जीने के कुल 8000 सूत्र लिखे हुए हैं। इन सूत्रों को वाग्भट्ट ने परीक्षण करने के बाद लिखा है। एक सूत्र में उन्होंने कहा है कि सुबह का जलपान हमें राजा-महाराजा की तरह करना चाहिए। दोपहर का भोजन हमें राजकुमार की तरह करना चाहिए जबकि रात्रि भोजन हमें भिखारी की तरह करना चाहिए। आशय यह है कि सुबह का जलपान जबरदस्त हो, जिससे न सिर्फ शरीर बल्कि हमारी आत्मा को भी तृप्ति मिले। सुबह-सुबह प्राप्त इस तृप्ति से हमारे दिन की सही और संतुलित शुरुआत होती है।
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