पूर्णिया के डीएम राहुल कुमार ने बताया, जेल से अवैध मोबाइल बरामद होना कैसे हुआ कम
Bharat Varta Desk : बिहार के जेलों में टेलीफोन बूथ लगाने की पहल सरकार द्वारा की गई है। जेल में बंद कैदी अब अपनों से फोन के माध्यम से बात कर पा रहे हैं। बंदियों द्वारा बातचीत की जेल प्रशासन की तरफ से पूरी निगरानी का नियम बनाया गया है। जेल प्रशासन की तरफ से एक अनिवार्य नियम भी बनाया गया है। इसमें उसी नंबर पर बातचीत होगी, जिस नंबर के बारे में बंदी पहले से जेल प्रशासन को बता रखे होंगे।
जेलों में टेलीफोन बूथ लगाने के सरकार के इस पहल का अब असर दिखने लगा है। पूर्णिया के जिलाधिकारी राहुल कुमार ने ट्विटर पर अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया है कि जब से पूर्णिया जेल में टेलीफोन बूथ शुरू किया गया है तब से अब छापेमारी के दौरान जेल के वार्डों से अवैध मोबाइल फोन की बरामदगी होना कम हो गया है।
पढिये क्या लिखा है जिलाधिकारी राहुल कुमार ने
अपनी नौकरी की शुरुआत में SDM के तौर पर या कुछ वर्ष पूर्व तक जिलाधिकारी के रूप में भी जब जेल में छापेमारी के लिए जाता था तो मोबाइल और सिम कार्ड सबसे common recoveries में शामिल होते थे। देर रात या अहले सुबह की रेड में जेल वार्ड की खिड़कियों के बाहर, शौचालयों में, पौधों के गमलों में मिट्टी के भीतर, ईंट के नीचे छुपाकर रखे हुए सिम कार्ड और मोबाइल के अलग-अलग किए हुए हिस्से मिलते थे।
फ़िल्म और मीडिया द्वारा बनाए गए perception के कारण बाक़ियों की तरह मुझे भी लगता था कि इनमें से अधिकतर का उपयोग जेल के अंदर से क्राइम ऑपरेट करने में होता होगा।
हाल के दिनों में रेड के दौरान जब मोबाइल मिलने लगभग बंद हो गए तो सालों से बनी हुई समझ में course correction करने की ज़रूरत महसूस हुई। वस्तुतः जब से जेल के अंदर फ़ोन बूथ की शुरुआत हुई तब से ही बंदियों को कक्षपालों से मिलीभगत कर मोबाइल का जुगाड़ करने की ज़रूरत पड़नी बंद हो गयी।
अपवादों को छोड़ दें तो जेल के अंदर मोबाइल क्राइम ऑपरेट करने के बजाए अधिकतर अपनों से बात करने की छटपटाहट में रखे जाते थे। एक नीतिगत निर्णय कई बार ज़मीनी बदलाव लाने के साथ साथ पूर्वाग्रहों पर भी मारक प्रहार कर जाता है।