विश्व भारती विश्वविद्यालय शांति निकेतन आज मना रहा शताब्दी समारोह, आइए जाने सौ साल पहले स्थापित दुनिया के इस महान शिक्षण संस्थान के बारे में…..
मुकेश कुमार की विशेष रिपोर्ट
दुनिया के नामचीन विश्वविद्यालयों में से एक विश्व भारती विश्वविद्यालय, शांतिनिकेतन आज शताब्दी समारोह मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियोकॉन्फ्रेंसिंग से समारोह को संबोधित किया है. यह दुनिया के नामी शिक्षण संस्थानों में से एक है. देश का इकलौता केंद्रीय विश्वविद्यालय है इसके चांसलर प्रधानमंत्री होते हैं.
कैसे बना विश्वविद्यालय: इसकी स्थापना 22 दिसंबर 1921 को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी. दरअसल रवींद्रनाथ के पिता महर्षि देवेंद्र नाथ ठाकुर ने अपनी साधना के लिए वर्ष 1961 में पश्चिम बंगाल के कोलकाता के समीप बोलपुर नामक स्थान में एक आश्रम की स्थापना की थी, उसका नाम शांतिनिकेतन रखा था. यह जगह कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में है. जिस स्थान पर वे साधना किया करते थे वहां एक संगमरमर की शिला पर बंगला भाषा में अंकित है–`तिनि आमार प्राणेद आराम, मनेर आनन्द, आत्मार शांति.’ इसी स्थान पर गुरुदेव रविंद्र नाथ ठाकुर ने 1901 में बच्चों की शिक्षा के लिए एक प्रयोगात्मक विद्यालय खोला जिसका नाम उस समय ब्रह्म विद्यालय रखा गया. यह विद्यालय उन्होंने 5 बच्चों से शुरू किया था. बाद में 1921 में टैगोर ने इस जगह पर विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की. आज यहां 6000 से अधिक छात्र पढ़ाई करते हैं.
प्रधानमंत्री होते हैं चांसलर: साल 1951 में भारतीय संसद ने एक विधेयक पास कर इस विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया. यह एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय है जिसके कुलाधिपति प्रधानमंत्री होते हैं जिनका कार्यकाल 3 साल का होता है. विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद चांसलर मनोनीत करती है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस विश्वविद्यालय के परिदर्शक (विजिटर) हैं. पश्चिम बंगाल के राज्यपाल इसके प्रधान (रेक्टर) होते हैं. राष्ट्रपति इस विद्यालय के कुलपति की नियुक्ति करते हैं. हर 3 साल पर कार्यकारी परिषद प्रधानमंत्री का नाम चांसलर के रूप में मनोनीत कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय को भेजती है. वहां से मुहर लग कर वह राष्ट्रपति के पास जाता है. गांधी को भी पसंद थी यह जगह शांतिनिकेतन में रवींद्रनाथ टैगोर ने कई अमर रचनाओं को जन्म दिया. उनके कारण हर जगह पूरी दुनिया में जानी गई. महात्मा गांधी जी को भी यह जगह बहुत पसंद थी. वे रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने यहां आए थे.