पटना। शिक्षा मंत्री के पद से मेवालाल चौधरी हटा दिए गए मगर मंत्री बनाने से लेकर फजीहत के बावजूद हटाने में देरी तक के घटनाक्रम का असली खिलाड़ी कौन है यह सवाल अभी भी अनुत्तरित बना हुआ है। जितनी मुंह उतनी बातें कही जा रही है। पूरे घटनाक्रम से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि प्रभावित हुई है।
इस पूरे खेल में पर्दे के पीछे कोई और है जो मेवालाल को मंत्री बनाने से लेकर हटाए जाने में देरी के लिए जिम्मेदार है। कहने को वह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का महत्वपूर्ण सिपहसालार, विश्वस्त, खासमखास, हितचिंतक हो सकता है लेकिन वास्तव में वह मुख्यमंत्री के उस छवि का शत्रु है जिसे नीतीश अपने जीवन की कमाई बताते हैं।
मुख्यमंत्री को नजदीक से जानने वाले लोगों को यह बात पच नहीं रही है कि बिहार कृषि विश्वविद्यालय में नियुक्ति घोटाले में घिरे मेवालाल जिसे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नीतीश कुमार ने ही कभी पार्टी से निलंबित किया था उसे वे खुद ही मंत्री बनाने का फैसला लिए होंगे। जो नीतीश कुमार अक्सर ऐसा कहते हैं कि ‘कफन में जेब नहीं होती’, वे ऐसा निर्णय कैसे ले सकते हैं। जानकारों का दावा है कि एक विश्वस्त सिपहसालार नेता की इसमें अहम भूमिका रही है। मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले उस नेता का मुख्यमंत्री के विशेष शाखा और निगरानी शाखा तक तूती बोलती है।
एक महत्वपूर्ण बात तो यह है ही कि शिक्षा मंत्री मेवालाल को हटाने में मुख्यमंत्री ने इतनी देरी क्यों की? उससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बुधवार की शाम को मुख्यमंत्री ने जब मेवालाल को तलब किया था तो लोगों को यह उम्मीद थी कि उसके तुरंत बाद वे शिक्षा मंत्री से हटा दिए जाएंगे मगर लोग हैरत में पड़ गए जब गुरुवार को मेवालाल ने बड़े ही ‘ठसक’ के साथ शिक्षा विभाग पहुंचे और मंत्री का कार्यभार संभाल लिया। यही नहीं उन्होंने चेतावनी भी दे डाली कि जो लोग उन पर आरोप लगा रहे हैं उन्हें वे मानहानि का नोटिस भेजेंगे। इससे आम-आवाम में यह संदेश गया कि मुख्यमंत्री से हरी झंडी मिलने के बाद ही मेवालाल ने कार्यभार संभाला है। लेकिन कुछ ही देर में मुख्यमंत्री ने लोगों को अपना संदेश दे दिया जब उन्होंने मेवालाल को फिर तलब किया और उन्हें अपने अंदाज में समझाते हुए शिक्षा मंत्री के पद से विदा कर दिया। राजभवन से जारी विज्ञप्ति से तो यह प्रतीत होता है कि मेवालाल पद से हटाए गए हैं।
जानकार लोगों का कहना है कि बुधवार की शाम को जब मुख्यमंत्री ने मेवालाल को अपने पास बुलाया था उसी समय इस्तीफा देने को कहा था लेकिन मेवालाल ने ऐसा नहीं किया और दूसरे दिन कार्यभार ग्रहण कर लिया। अब सवाल यह उठ रहा है कि कौन सी ऐसी ताकत का संरक्षण रहा होगा जो मेवालाल को इतना दुस्साहसी बना रही थी। इस पर भी भाजपा के साथ-साथ जदयू के कई नेता हैरत में है। क्योंकि मामला मुख्यमंत्री के क्षवि पर उठते सवाल से जुड़ा था। भाजपा और जदयू के नेता दबे-जुबान यह भी चर्चा कर रहे कि मेवालाल के पावरहाउस बन किसी अपने ने ही मुख्यमंत्री की क्षवि बिगाड़ने की साजिश तो नहीं रचा।
मेवालाल की संतुलित सफाई
हालांकि मेवालाल ने बड़े ही संतुलित और शालीन ढंग से इस पर सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि जब उन्हें लगा कि उनके नेता नीतीश बाबू की छवि पर सवाल उठ रहा है तो उन्होंने उनके पास जाकर कहा कि वह इस्तीफा दे रहे हैं। जब पाक-साफ हो जाएंगे तो जो जिम्मा मिलेगा वे निभाएंगे। मेवालाल ने यह भी कहा है कि इस्तीफा देने के लिए किसी का दबाव नहीं था।
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