नई दिल्ली संवाददाता: शहरों में थोड़ा जाड़ा बढ़ते ही लोग परेशान हो जाते हैं क्या आपने कभी सोचा है जो 22,000 फीट की ऊंचाई पर देश की रक्षा करने वाले सेना के जवान कैसे रहते होंगे जहां तापमान -40 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है। सियाचिन में माइनस 40 डिग्री तापमान में भारतीय सेना के जवानों हर दिन यहां जमा देने वाली ठंड से जूझते हैं और कई बार अपनी जान तक गंवा देते हैं। सियाचीन में कुछ स्थानीय लोगों को सेना में पोर्टर यानी कि सामान उठाने वाले के लिए काम पर रखा जाता है। भारतीय सेना ने इन्हें पोर्टर नाम दिया है। सियाचीन में माइनस डिग्री तापमान में ये अपनी जान की परवाह किए बिना सैनिकों के लिए उनकी हर जरूरत का सामान पीठ पर लादकर सेना की पोस्ट तक पहुंचाते हैं। हम आपको मिलवाने जा रहे हैं सेना के पोर्टर 31 वर्षीय स्टैनज़िन पद्मा से जो पिछले 8 वर्षों से पोर्टर के तौर पर काम कर रहे हैं और सेना के दो जवानों की जान भी बचा चुके हैं। स्टैनज़िन पद्मा को अवार्ड से भी से नवाजा जा चुका है।
सियाचिन ग्लेशियर पर सेना की चौकियों पर 20 किलो तक भार उठाने के लिए पोर्टर्स के रूप में कार्यरत 31 वर्षीय स्टैनज़िन पद्मा एक ऐसी कुली है, जिसने न केवल दो भारतीय सेना के जवानों को बचाया, बल्कि 8 वर्षों के कार्यकाल के दौरान मृतक सैनिकों और साथी पोर्टरों के शवों को गहरी बर्फ से ढ़ूढ़ निकाला। पद्मा को 2014 में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा जीवन रक्षक पद से भी नवाजा गया। उन्हें ये पुरस्कार बचाव दल को गंभीर चोट की परिस्थितियों में जीवन को बचाने के लिए साहस और तत्परता के लिए” दिया गया था।
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