भागलपुर की कालीपूजा: यहां कई नामों से पुकारी जाती हैं मां काली
- शिव शंकर सिंह पारिजात
भागलपुर: भागलपुर में प्रति वर्ष पारम्परिक श्रद्धा व आस्था के साथ काली पूजा का आयोजन किया जाता है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर यहां 200 से भी उपर मां की प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। यहां की विसर्जन शोभायात्रा भी विशिष्ट होती है जिसे देखने के लिये बड़ी संख्या में शहरी क्षेत्र के अलावा दूर-दराज से लोग आते हैं। अपने वृहत व विशिष्ट आयोजन के कारण भागलपुर की कालीपूजा पूरे बिहार में अपने ढंग की अनूठी है।
भागलपुर के विभिन्न काली मंदिरों व पंडालों में पूरी साज-सज्जा के साथ कलात्मक रूप से निर्मित देवी की प्रतिमाएं बैठायी जाती। वर्षों से एक रूपाकार में पारम्परिक शैली में बननेवाली मूर्तियों के परिधान व सजावट स्थानीय कलाकारों के द्वारा किये जाते हैं जो आपको कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे। चमकीले रंगीन कागज, शोले-सनाठी तथा सलमा-सितारों से जड़ित इन साज-सज्जाओं की शोभा देखते बनती है। देवी को सोने तथा चांदी के आभूषणों से अलंकृत किया जाता है।
अपने विशाल रूपाकार व विशिष्ट साज-सज्जा के अलावा यहाँ के विभिन्न टोलों-मुहल्लों में स्थापित की जानेवाली देवी प्रतिमाओं को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है जो भक्तों की आस्था और भक्ति को प्रतिबिंबित करता है।
भागलपुर में स्थापित होनेवाली काली प्रतिमाओं के अनूठे नामों की बात की जाए, तो यहां के मंदरोजा मुहल्ले की देवी हड़बड़िया काली कहलाती हैं। इनके इस विशिष्ट नामकरण के पीछे की कहानी यह है कि एक साल मां काली की स्थापित की जानेवाली प्रतिमा अकस्मात वर्षा के कारण क्षतिग्रस्त हो गयी जिसके चलते दूसरी प्रतिमा काफी हड़बड़ी अर्थात जल्दबाजी में बनानी पड़ी और तभी से इनका नाम हड़बड़िया काली पड़ गया। नाम के साथ हड़बड़िया काली को चढ़ाया जानेवाला भोग भी विशिष्ट होता है। देवी को 251 किलो खीर का भोग लगाया जाता है। वहीं बूढ़नाथ जोगसर की काली को खिचड़ी का भोग तो मशाकचक की कालीबाड़ी में दही-चूड़ा का भोग लगता है।
भागलपुर के परबत्ती और ईशाकचक की काली बूढ़िया काली कहलाती हैं तो हसनगंज, तिलकामांझी, जोगसर व मिनी मार्केट की काली को बमकाली कहकर पुकारा जाता है। बूढ़नाथ व उर्दू बाजार में ये मशानी काली, तो मुंदीचक मुहल्ले में स्वर्णकार काली। बीहपुर में भक्त इन्हें मां बाम काली कहकर पुकारते हैं, तो बूढ़नाथ चौक पर स्थित मंदिर में ये बरमसिया काली कहलाती हैं; क्योंकि ये साल के बारहों महीने अपने स्थान पर विराजमान रहती हैं।
भागलपुर के घंटाघर चौक, सोनापट्टी, जबारीपुर, मायागंज, अलीगंज आदि मुहल्लों में भी प्रतिमाएं स्थापित की जाती है। इसके अलावे सबौर, सुलतानगंज, पीरपैंती, कहलगांव, सन्हौला, नवगछिया, बीहपुर, नारायणपुर, शाहकुंड आदि प्रखंडों के विभिन्न स्थानों में भी धूमधाम से कालीपूजा होती है।
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