पटना। नियुक्ति घोटाले के आरोपी शिक्षा मंत्री हटा दिए गए। सत्तारूढ़ दल के लोग गुस्से में हैं। वे विपक्ष के नेता से भी इस्तीफा मांग रहे हैं। मेवालाल के इस्तीफे के बाद पक्ष और विपक्ष के लोगों में युद्ध छिड़ा हुआ है। इस मुद्दे पर बिहार देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है।
इस विषय पर पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार रवीन्द्र नाथ तिवारी के विचार …..
मेवा-लाल जैसे लोगों को शिक्षा व्यवस्था के अहम पद पर बैठाने की यह घटना कोई अनहोनी नहीं है। लंबे अरसे से बिहार के हुक्मरानों ने मंत्री और शिक्षा के महत्वपूर्ण पदों पर ऐसे लोगों को बैठाया जिन के कारनामों से शिक्षा का बंटाधार हुआ बहुत पहले से हम देखें तो कई ऐसे उदाहरण हैं जिनसे यह पता चलता है कि ‘मेवा’ खाने और खिलाने वाले ‘लालों’ को पद देने में तवज्जो दी गई।
एक शिक्षा मंत्री जेल गए तो दूसरे रंगदारी मांग कर पद गवाया
आज मेवा-लाल के मुद्दे पर जो दल सरकार पर हमलावर है उसी दल के शिक्षा मंत्री जयप्रकाश नारायण यादव को निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने बीएड डिग्री घोटाले में गिरफ्तार कर जेल भेजा था। जयप्रकाश लालू यादव की सरकार में सबसे ताकतवर मंत्री माने जाते थे। उसी सरकार में शिक्षा राज्य मंत्री वीरेंद्र प्रसाद के खिलाफ मोतिहारी के तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी ने एक लाख रुपए रंगदारी मांगने की शिकायत उच्चाधिकारियों से की थी। तब इस मुद्दे पर विधानसभा में भारी हंगामा हुआ था। मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव उस समय पाकिस्तान की यात्रा पर थे। उन्होंने वहीं से वीरेंद्र प्रसाद को इस्तीफा देने का निर्देश दिया। मंत्री का इस्तीफा हुआ। वीरेंद्र तत्कालीन साइंस और टेक्नोलॉजी मिनिस्टर बृज बिहारी प्रसाद के भाई थे।
बृज बिहारी प्रसाद….
राजद शासनकाल के साइंस और टेक्नोलॉजी मिनिस्टर बृज बिहारी प्रसाद के कार्यकाल में बिहार का इंजीनियरिंग घोटाला पूरे देश में चर्चित हुआ था। तकनीकी संस्थानों में भर्तियों और एडमिशन में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां हुईं और इन सबके पीछे उनका नाम सामने आया। बृजबिहारी प्रसाद को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया। बृजबिहारी प्रसाद भी कुछ दिन जेल में रहे और फिर वो आईजीआईएमएस अस्पताल में भर्ती हो गए। अपराधियों ने अस्पताल में ही गोलियों से भून डाला था। बृजबिहार प्रसाद की हत्या बिहार में पहली ऐसी वारदात थी, जब सरेआम किसी मंत्री को ही मार डाला गया। और हाँ, वो भी दिनदहाड़े। बृज बिहारी प्रसाद का इतिहास किसी से छिपा नहीं था। आज उनकी पत्नी भाजपा से सांसद है।
दो समधी लालकेश्वर और अरुण कुमार की कहानी
बिहार बोर्ड टॉपर घोटाला कांड में अध्यक्ष लाल केश्वर प्रसाद सिंह जेल गए। लालकेश्वर बिहार बोर्ड के अध्यक्ष के पहले पटना कॉलेज के प्रिंसिपल थे। बिहार में पत्रकारिता पर सरकार द्वारा अंकुश लगाए जाने की शिकायत की जांच के लिए भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू पटना आए थे। उनकी एक मीटिंग में सरकार के निरंकुश रवैया के आरोप के विरोध में प्राचार्य लालकेश्वर ने भारी हंगामा कर दिया था। अपने उस व्यवहार से वे सरकार के कट्टर समर्थक के रूप में चर्चा में आए थे। उसके कुछ ही दिनों बाद रिटायर होने पर उन्हें बिहार बोर्ड का अध्यक्ष बना दिया गया था। उस समय उनकी पत्नी उषा सिन्हा गंगा देवी महिला कॉलेज की प्राचार्य थी। उषा सिन्हा सत्ताधारी पार्टी जदयू से विधायक भी रह चुकी हैं। बिहार बोर्ड में भारी धांधली के आरोप में लालकेश्वर और उनकी पत्नी पूर्व विधायक डॉ. ऊषा सिन्हा को भी जेल जाना पड़ा था। क्योंकि उषा सिन्हा पर आरोप लगा था कि वो अपने प्रिंसिपल चैम्बर में बैठ कर बिहार बोर्ड के परीक्षा, रिजल्ट, कॉलेज एफलिएशन में धांधली करवाती थीं। लालकेश्वर और उषा सिन्हा के संरक्षण में ही टॉपर घोटाले के आरोपी बच्चा राय बिहार बोर्ड का अघोषित-किंग बन बैठा था।
अब उनके समधी के बारे में भी जान लीजिए। कुलपति अरुण कुमार। वह एक साथ मगध विश्वविद्यालय, भागलपुर विश्वविद्यालय, बीएन मंडल विश्वविद्यालय और नालन्दा ओपेन यूनिवर्सिटी के कुलपति हुआ करते थे। मूल रूप से बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा के कुलपति थे मगर तीन अन्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों का उन्हें अतिरिक्त प्रभार था। कुलपति बनाने वालों की उन पर कितने मेहरबानी थी इससे समझा जा सकता है। वे हर विश्वविद्यालय में अपने कारनामों से चर्चित हुए। बाद में मगध विश्वविद्यालय के प्राचार्य नियुक्ति घोटाले के मामले में निगरानी अन्वेषण ब्यूरो ने उन्हें जेल भेजा। अरुण कुमार के बेटे और लालकेश्वर प्रसाद के दामाद पर बिहार बोर्ड में प्रिंटिंग घोटाले का आरोप लगा था। अरुण कुमार के समय ही उनके भाई भागलपुर और मुंगेर के डीआईजी पद को एक साथ पदस्थापित थे। वे मूल रूप से भागलपुर रेंज के डीआईजी के पद पर पदस्थापित थे मगर यह मात्र 3 जिलों का रेंज है। उन्हें मुंगेर रेंज का प्रभार भी इसलिए दिया गया था कि उसमें 5 जिले हैं। यही नहीं रिटायर होने पर उन्हें पुलिस भर्ती बोर्ड का मेंबर भी बना दिया गया। हर सरकारों में सेटिंग के ऐसे उदाहरणों की भरमार रही है।
ये सारे उदाहरण यह बताने के लिए काफी है कि बिहार की शिक्षा के बंटाधार में कौन और किस प्रकार की भूमिका निभाता रहा है, रैकेट चलाने वालों की कहां और कितनी सेटिंग है। इस मामले में जाति, धर्म और दल से ऊपर उठकर लोग काम कर रहे हैं।
हम केवल सरकार को ही दोष क्यों दें। कुलपतियों की नियुक्ति कैसे और किस तरह से हो रही है, किस किस तरह के लोग इस इन पदों पर बिठाए जा रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है। ऐसे लोग पद पर जाकर अपनी भरपाई तो करेंगे ही न? इस्तीफा देने वाले शिक्षा मंत्री के समर्थन में कई लोग खड़े हैं जो बता रहे हैं कि अपने विषय में उनकी योग्यता और प्रतिभा को कोई चुनौती नहीं दे सकता है। उनका कहना है कि जिस नियुक्ति घोटाले का आरोप है उस नियुक्ति प्रक्रिया के लिए कमिटी गठित की गई थी।
बीपीएससी घोटाला
एक और मामला याद आ रहा है। 2004-2005 में बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सीमित प्रतियोगिता परीक्षा में ड्राइवर, नर्स और सिपाहियों के डिप्टी कलेक्टर बनाए जाने की गड़बड़ी की खबर हमने ब्रेक की थी। पटना हाई कोर्ट ने इस खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए घोटाले की निगरानी जांच का निर्देश दिया। आयोग की कार्यकारी अध्यक्ष रजिया तबस्सुम समेत कई सदस्य घेरे में आए। रजिया पटना विमेंस ट्रेनिंग कॉलेज की शिक्षक थी। घोटाला इतना बड़ा निकला कि उसके जांच में लंबा समय लग गया। इसके चलते करीब 4 -5 साल तक बिहार लोक सेवा आयोग की बहाली बंद रही।
बाहुबली विधायक कैसे बना बीपीएससी टॉपर
बिहार के मामलों की जानकारी रखने वाले पुराने लोग बताते हैं कि जब मगध रेंज का एक बाहुबली विधायक डिप्टी कलेक्टर की परीक्षा में टॉपर बना दिया गया था। वह राजद शासन का जमाना था। हाल में जदयू-भाजपा के एक नेता जो आयोग के मेंबर बनाए गए थे उन पर अभ्यर्थी से 25 से 40 लाख रुपये घूस मांगने का आरोप लगा था।
व्याख्याता भर्ती घोटाला
2003 में बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग के व्याख्याता भर्ती घोटाला को आज भी लोग नहीं भूले हैं। नियमों को ताक पर रखकर पैसे और पैरवी के आधार पर बड़ी संख्या में व्याख्याताओं की भर्ती की गई थी। इनमें राज्य के कई महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञों और अफसरों के पत्नियों, बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों को नौकरी के मेवा बांटे गए थे। इस मामले में उस समय के आयोग के कई अध्यक्ष और सदस्य जेल गए। इनमें पटना विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर और अध्यक्ष सरदार देवनंदन, रांची यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और आयोग के अध्यक्ष बहाव अशर्फी समेत शिक्षा क्षेत्र के कई दिग्गजों आमिर थे जिन्हें हुक्मरानों ने मेवा खाने और खिलाने के लिए मेवा-लाल के रूप में महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया था। आपको यह भी बता दें कि इन मेवा लालों द्वारा की गई उस समय की सारी बहालिया बरकरार रह गई।
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