बड़ी खबर

पत्रकार के सोशल मीडिया पोस्ट के खिलाफ एफआईआर को हाईकोर्ट ने किया रद्द, पढ़िए कोर्ट ने क्या कहा…

Bharat varta desk:

ध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक पत्रकार के खिलाफ यह कहकर FIR रद्द कर दी कि यह जल्दबाजी में की गई FIR है. साथ ही अदालत ने कहा कि, ‘अभिव्यक्ति की आजादी का अस्तित्व तब ही है जब एक नागरिक बिना किसी डर के सरकार की आलोचना कर सके.’ 

कोर्ट ने क्या कहा?

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, अदालत, मोनू उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. मोनू एक स्थानीय पत्रकार हैं. उन्होंने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के जरिए ग्वालियर चंबल क्षेत्र की लहार विधानसभा के चुनाव पर संदेह व्यक्त किया था. मोनू और एक अन्य व्यक्ति के खिलाफ IPC की धारा (505) (2) यानी सार्वजनिक अव्यवस्था पैदा करने वाले बयान देने और धारा 188 (सरकारी कर्मचारी के विधिवत आदेश को न मानने) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था. जिसके बाद याचिकाकर्ता मोनू उपाध्याय की तरफ से उनके वकील गौरव मिश्रा ने हाईकोर्ट का रख किया. उनका तर्क था कि मुवक्किल ने सोशल मीडिया पर अपनी राय जाहिर की. और चूंकि ‘पोस्ट एक IAS अधिकारी से जुड़ी थी, इसलिए उनके खिलाफ जल्दबाजी में FIR दर्ज की गई है.’

जस्टिस आनंद पाठक की सिंगल जज बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. उन्होंने FIR को रद्द करते हुए कहा,

“FIR… आर्टिकल 19 के तहत याचिकाकर्ता को मिलने वाले मौलिक अधिकारों के विपरीत है. याचिकाकर्ता का सोशल मीडिया पोस्ट केवल बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्गत आता है. और इससे IPC की धारा (505) (2) और धारा 188 के तहत कोई अपराध नहीं बनता.”

हाईकोर्ट ने आगे कहा,

“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, संवैधानिक भावना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बनाए रखने वाले मुख्य स्तंभों में से एक है और इसलिए इसकी सुरक्षा जरूरी है. फ़्री स्पीच तब अस्तित्व में है जब नागरिक बिना किसी प्रतिक्रिया जैसे- जेल जाने या हिंसा की धमकी मिलने के डर से अपनी राय जाहिर कर सकें. इसमें वो विचार भी शामिल हैं जो सरकार की आलोचना में हैं. लोकतंत्र का लक्ष्य एक सहिष्णु समाज बनाना है. इस उद्देश्य को सफलतापूर्वक पाने के लिए नागरिकों के पास ये क्षमता होनी चाहिए कि वो खुलकर और आजादी से बोल सकें कि वो कैसा शासन चाहते हैं.”

कोर्ट ने ये भी कहा,

“विचारों और किसी राय का आदान-प्रदान सिर्फ चुनाव के दिन होने वाली चीज नहीं है. बल्कि सरकार के पूरे कार्यकाल के दौरान एक सतत चलने वाला दो-तरफ़ा संचार (कम्युनिकेशन) है. याचिकाकर्ता की पोस्ट को समाज के अलग-अलग वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना को बढ़ावा देने या किसी सार्वजनिक शरारत पैदा करने के आरोपों से जोड़ा नहीं जा सकता.”  

कोर्ट ने कहा कि विधानसभा में निष्पक्ष चुनाव कराना, ख़ास तौर से भिंड/चंबल क्षेत्र में, हमेशा सबसे जरूरी रहा है और अगर स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव होने को लेकर कोई शक जाहिर करता है तो ये किसी भी तरह से अपराध नहीं है.

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

Recent Posts

प्रधानमंत्री मोदी ने संगम में लगाई डुबकी

Bharat Varta Desk प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकुंभ मेले के अवसर पर संगम में आस्था… Read More

6 hours ago

दिल्ली में मतदान को लेकर भारी उत्साह, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, राहुल गांधी समेत कई दिग्वोगजों ने डाले

Bharat varta Desk दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए राजधानी की सभी 70 विधानसभा सीटों पर… Read More

6 hours ago

रांची एसएसपी की पत्नी बनीं सीडीपीओ से आईएएस अधिकारी

Bharat varta Desk झारखंड में गैर असैनिक सेवा संवर्ग के 6 अफसरों को आईएएस के… Read More

2 days ago

अनुराग गुप्ता हुए झारखंड के स्थाई डीजीपी

Bharat varta Desk झारखंड सरकार ने भारतीय पुलिस सेवा के तेजतर्रार और प्रभावशाली अधिकारी अनुराग… Read More

2 days ago

बीपीएससी अध्यक्ष की नियुक्ति गलत! सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को जारी की नोटिस

Bharat varta Desk सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार सरकार को नोटिस जारी किया है।… Read More

2 days ago

कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान के बेटे ने सुसाइड किया

Bharat varta Desk बिहार के कांग्रेस विधायक दल के नेता शकील अहमद खान के 17… Read More

2 days ago