धर्म/अघ्यात्म

नवरात्र विशेष: भक्त की पुकार पर साक्षात प्रकट हुईं थीं थावे की माता भवानी

  • शिव शंकर सिंह पारिजात, उप जनसंपर्क निदेशक (अवकाश प्राप्त), सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, बिहार सरकार।

NewsNLive नवरात्र विशेष: बिहार के गोपालगंज जिला मुख्यालय से सीवान पथ पर 6 किमी की दूरी पर मां भवानी की महिमा से मंडित एक जाग्रत शक्ति-पीठ है जिसकी प्रसिद्धि थावे दुर्गा मंदिर के रूप में है। शक्तिस्वरूपा थावे भवानी के बारे में मान्यता है कि ये परम भक्त-वत्सल हैं जो अपने भक्त के पुकार पर साक्षात प्रकट हुईं थीं, वहीं दूसरी ओर दुर्गतिनाशिनी के रूप में यहां के अत्याचारी राजा का अंत कर प्रजा के कष्टों को दूर की थीं। इस शक्ति-पीठ के साथ देवी के परम भक्त रहषु स्वामी तथा यहाँ के तत्कालीन चेरो-वंश के क्रूर राजा मनन सेन की कहानी जुड़ी हुई है जो 300 वर्ष पुरानी बतायी जाती है। किंवदंती है कि रहषु स्वामी की पुकार पर जहां देवी कामरूप कामाख्या से चल थावे पधारकर अपने भक्त को दर्शन देकर धन-धान्य की थी, वहीं चेरो वंश के क्रूर राजा के साम्राज्य को विनष्ट कर आम लोगों को राहत दिलायी थी।

थावे में माता भवानी का भव्य मंदिर है और इसके निकट ही भक्त रहषु स्वामी का भी धाम है। देवी मंदिर के सामने एक पवित्र सरोवर भी विद्यमान है। मां थावे भवानी की महिमा से खिंचे भक्त न सिर्फ बिहार के कोने-कोने से, वरन् सीमावर्ती उत्तर प्रदेश व निकटवर्ती नेपाल से भी सालो भर बड़ी संख्या में आते रहते हैं। अपने कष्ट-क्लेषों व दुखों से निजात पाने तथा मनोकामनाओं की पूर्ति हेतु प्रत्येक सोमवार और शुक्रवार को यहां श्रद्धालुओं का विशेष जमावड़ा लगता है, पर नवरात्र शारदीय पूजा, चैत्र रामनवमी एवं शरद रामनवमी के अवसर पर यहां विराट मेले लगते हैं। शारदीय नवरात्र परराज्य सरकार भव्य ‘थावे महोत्सव’ का भी आयोजन करती है।

थावे भवानी के आविर्भाव के बारे में कथा है कि 1714 ई. के पूर्व इस क्षेत्र पर चेर वंश के राजा मनन सेन का शासन था, जो देवी के भक्त होने के बावजूद अत्यंत क्रूर स्वभाव का था जिससे वहां की जनता त्रस्त थी। इसी राज्य में देवी भवानी की परम भक्त एक दलित महिला मुनिया थी जो प्रजा के कष्टों के निवारण हेतु माता से प्रर्थना करती रहती थी। देवी के आशीर्वाद से मुनिया ने एक तेजस्वी बालक को जन्म दिया जो बड़े होकर मां भवानी की भक्ति में इतने तल्लीन हो गये कि उनकी प्रसिद्धि रहषु स्वामी के नाम से होने लगी।

एक बार राज्य में भीषण अकाल पड़ा जिससे त्राण पाने हेतु पीड़ित जनमानस ने जंगल में तपस्यारत रहषु स्वामी के पास जाकर गुहार लगाई। देवी की कृपा से रहषु स्वामी सात बाघों को सांप रुपी रस्सी से बांधकर अति सुगंधित व उत्कृष्ट मनसा धान की दौरी कर लोगों को चावल बांटने लगे। यह समाचार सुन दंभी राजा मनन चौंक उठा कि उसके राज्य में ऐसा कौन व्यक्ति है जो इतना कीमती चावल गरीबों में बांट रहा है जो राजमहल में भी उपलब्ध नहीं है।

राजा के आदेश से रहषु स्वामी को जब हाजिर किया गया तो उन्होंने बताया कि वे तो एक जरिया मात्र हैं, यह सब तो देवी की कृपा का फल है। राजा को जब मालूम हुआ कि देवी रहषु को प्रतिदिन दर्शन देती हैं, तो उसने भी देवी दर्शन की जिद ठान ली। रहषु ने राजा को लाख समझाया कि ऐसा करने से अनर्थ हो जायेगा। न उसके प्राण बचेंगे और न राजपाट ही बचेगा। पर दंभी राजा ने निश्छल हृदय भक्त की एक न मानी।

बाध्य होकर रहषु स्वामी राजमहल में ही आसन लगाकर देवी का आह्वान करने लगे। भक्त की पुकार को भला मां कैसे टाल पातीं! और वे कामरूप कामाख्या से चल पड़ीं। पहले पटन देवी आयीं, फिर दिघवारा होते हुए घोड़ाघाट में अवस्थान किया। रहषु ने पुनः राजा से देवी दर्शन की जिद छोड़ने का अनुरोध किया, पर राजा अड़ा रहा। घोड़ाघाट से चलकर देवी के थावे के निकट पहुंचते ही जोरों की आंधी आ गयी। चारों तरफ विध्वंस मच गया। पल भर में राजा का महल खंडहर में तब्दील हो गया। रहषु की ईहलीला समाप्त हो गई और देवी का दर्शन करते ही राजा के भी प्राण-पखेरू उड़ गये। मां की महिमा की कहानी चारों दिशाओं में फैल गई और भक्तगण देवी के शरण में आकर उनके पूजन-अर्चन में तल्लीन हो गये।

रहषु स्वामी की यह पूरी कथा थावे में आकर्षक मूर्तियों के माध्यम से थावे में प्रदर्शित है जो अत्यंत रोचक है। थावे की भवानी माता भक्तवत्सल और कल्याणमयी हैं। विशेष रूप से नवरात्र के दिनों में इनका दर्शन फलदायक है।

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

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