धर्म/अघ्यात्म

जीवन के उजास का पर्व है छठ : डॉ नीतू कुमारी नवगीत

छठ पर्व विशेष : छठ जीवन के उजास का पर्व है। पारंपरिक लोक गीतों की धुन पर जब पूरा समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को आंचल में समेटे प्रकृति के साथ आबद्ध होकर पूरी सादगी और स्वच्छता के साथ एकजुट खड़ा हो जाता है, तब छठ होता है। पूर्वांचल का यह त्योहार अब राज्य और देश की सीमाओं को लांघते हुए विश्व के अनेक देशों में पहुंच चुका है। वस्तुतः बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग देश-विदेश में जहां भी गए, अपने गमछे में यहां की संस्कृति को बांधकर ले गए। उनके साथ गई महिलाओं ने अपने आंचल में संस्कारों और लोकगीतों का खोइंचा लेकर गईं। तभी तो छठ का त्योहार अब चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई, गोवा, दिल्ली, चंडीगढ़ इंदौर जैसे स्थानों पर तो मनाया ही जाता है; विदेशों में लंदन, बर्लिन, मास्को, वाशिंगटन और नेवार्क जैसे वृहद शहरों में भी मनाया जाता है। मॉरीशस, फिजी और गुयाना जैसे देशों में तो हजारों लोग इस पर्व को मनाते हैं।

पूर्वी भारत में जितने भी लोक त्योहार मनाया जाते हैं, सब में महिलाएं एक साथ मिलकर गीत गाती हैं। भैया दूज हो या रक्षाबंधन, कार्तिक पूर्णिमा हो या एकादशी- लोक परंपरा से जुड़े सभी त्योहारों के दौरान लोक गीत गाए जाते हैं, लेकिन छठ की बात ही कुछ और है। इसे त्योहार की जगह महापर्व का दर्जा दिया गया है। लोक आस्था के महापर्व के गीत पूरी तरह प्रकृति को समर्पित हैं। पारंपरिक धुनों पर सुरुज देव और छठी मैया की महिमा का बखान। साथ ही उन सभी प्राकृतिक सामग्रियों का भी बखान जिनका उपयोग छठ पर्व के दौरान किया जाता है। छठ से जुड़ी परंपराओं और छठ की पवित्रता को बरकरार रखने की कोशिशों का बखान। ये सभी छठ गीतों की कुछ खास विशेषताएँ हैं।
जिस प्रकार आत्मा के बिना शरीर का अस्तित्व नहीं हो सकता, उसी प्रकार इस चराचर जगत की सत्ता भगवान भास्कर पर ही अवलंबित है। धरती यदि हमारी माता हैं तो सूर्य पिता हैं । पृथ्वी पर जब-जब संकट के क्षण आते हैं, इसकी रक्षा के लिए सूर्य देव प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय हो जाते हैं। भगवान भास्कर में असीम शक्ति है। इतनी प्रचंड शक्ति कि सारी प्रकार की व्याधियों का नाश सूर्य की किरणों से संभव है। 2023 में जब हम अटूट विश्वास के इस पर्व को मना रहे हैं तो सब की कामना यही है समस्त विश्व सुख और शांति फैले तथा अपने देश एवं बिहार राज्य की चहुमुखी प्रगति हो। विश्व पर मंडरा रहे खतरे और चिंताओं का नाश हो।
शुद्धता, स्वच्छता और असीम श्रद्धा छठ पर्व को खास बनाते हैं। हमें सदैव शुद्धता और स्वच्छता पर ध्यान देने की जरूरत है। छठ के दौरान स्वच्छता का भाव व्यक्तिगत स्तर पर भी दिखता है और सार्वजनिक स्तर पर भी। छठ व्रती अपने अपने घरों की सफाई तो करते ही हैं, सार्वजनिक स्थानों की सफाई और स्वच्छता के लिए लोग स्वेच्छा से आगे आते हैं। इससे वातावरण में विशेष प्रकार की पवित्रता समाहित हो जाती है ।
इस महापर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीतों की परंपरा बहुत ही समृद्ध रही है। इस चार दिवसीय अनुष्ठान की सारी गतिविधियों को गीतों में स्थान मिला है। पहला दिन नहाय-खाय का होता है। इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। सभी व्रतधारी गीत गाते हुए गंगा स्नान के लिए जाते हैं। तट पर बैठकर भी मां गंगा की स्तुति की जाती है-
मांगी ला हम वरदान हे गंगा मैया
मांगी ला हम वरदान ।
जनकपुर नईहर दीहां
सासुर अवधपुर समान ।
राम जइसन बेटा तू दीहां
बेटी सीता समान
पार्वती हमरा बनाईह
स्वामी शंकर समान
मांगी ला हम वरदान ।
वस्तुतः मां गंगा के तट पर छठ पर्व करने का आनंद सबसे विशिष्ट होता है। लेकिन इस पर्व के दौरान एक और खास बात होती है और वह यह कि जिस किसी भी नदी या तालाब के तट पर छठ का महापर्व आयोजित होता है,वह तक भी पटना का गंगा घाट बन जाता है-
पटना के घाट पर
हमहूँ अरगिया देबई हे छठी मैया
हम ना जाईब दोसर घाट
देखब छठी मैया
सूप ले ले ठाड़े बाड़े
डोम-डोमिनिया
देखब हे छठी मैया
फूल ले ले ठाड़े बाड़े
माली मलिनिया
देखब हे छठी मैया ।
आधुनिकता ने छठ की सामग्रियों को बाजार का विषय बना दिया है । लेकिन पारंपरिक रूप से देखा जाए तो छठ सामाजिक समरसता का त्यौहार है । समाज के सभी वर्गों की भागीदारी छठ के सामग्रियों में होती है । कुम्हार के घर से दीया आता है तो जुलाहे के घर से बाती । डोम के घर से सुप आता है तो मालिन के घर से फूल । एक लोकगीत में छठ व्रती महिला अपने पति से गुजारिश करती है-
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो ।
चल चलअ चल बालम पटना सहरिया हो ।।
मऊनी मंगा दा बालम
सुपली दिला दा बालम
चाही एगो बांस के डगरिया हो
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो ।
चल चलअ चल बालम पटना सहरिया हो ।।
नरियल मंगा दा बालम
केलवा दिला दा बालम
छठी घाटे पर हम पहनब नयका सरिया हो
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो ।
चल चलअ चल बालम पटना सहरिया हो ।।
चूल्हा मंगा दा बालम
गेहूंवा पिसा दा बालम
तु हूँ पहिन ला बालम नयका पगारिया हो
गंगा के तीरे करब छठ के बरतिया हो ।
चल चलअ चल बालम पटना सहरिया हो ।।
प्रकृति के कण-कण में जब सूर्य देव की सुनहरी किरणें प्रविष्ट होती हैं तो प्रकृति का रोम-रोम सिंदूरी हो उठता है । सूर्यदेव कभी केले के पत्ते पर तो कभी नारियल के पत्ते पर उदित होते दिखाई पड़ते हैं । छठ व्रती महिलाएं गाती हैं-
केलवा के पात पर उगेलन सुरुज देव झाँके-झूँके
हे करेलू छठ बरतिया से झांके-झुँके
हम तोहसे पूछी बरतिया हे बरतिया से केकरा लागी
हे करेलू छठ बरतिया से केकरा लागी
हमरो जे बेटवा कवन ऐसन बेटबा से उनके लागी
हे करेलू छठ बरतिया से उनके लागी ।।
इस प्रकार के सवाल-जवाब के माध्यम से छठ व्रती स्त्री दूसरी स्त्री को बताती है कि वह अपने पुत्र-पुत्री और अपने स्वामी के सुख और समृद्धि के लिए यह छठ व्रत कर रही हैं ।
लोकगीतों में छठ पूजा की सामग्रियों की चर्चा बार-बार होती है । कांच ही बांस के बहंगिया बहुत ही चर्चित और प्रसिद्ध छठ गीत है-
कांचे ही बांस के बहंगिया बहंगी लचकत जाए
बाट जे पूछे ला बटोहिया
बहंगी केकरा के जाए
बहंगी छठी मैया के जाए ।
छठ पूजा में पवित्रता का बहुत महत्व है । जो भी सामग्री पूजा के लिए उपयोग में लाई जाती है, वह पूरी तरह से शुद्ध होनी चाहिए । एक लोकगीत में जब तोता छठ की सामग्री को जूठा करने का प्रयास करता है, तो उसकी खूब खबर ली जाती है-
केलवा जे फरेला घवद से
उस पर सुगा मंडराय
मारबो रे सुगवा धनुष से
सुगा गिरे मुरझाए ।
सुगा यानी तोता जब छठ सामग्री को जूठा करने के प्रयास में वाण लगने से मूर्छित हो गिर पड़ता है, तो फिर छठ व्रती महिला आदित्य देव से प्रार्थना करती हैं-
सुगनी जे रोवली वियोग से
आदित होई ना सहाय ।
महापर्व छठ के लोकगीतों में सामाजिक ताने-बाने का एक दूसरा स्वरूप ही देखने को मिलता है । ग्रामीण भारतीय समाज में प्रायः हर लोक पर्व में बेटे की कामना की जाती है । लेकिन छठ के एक गीत में बेटी की कामना बड़े ही निराले अंदाज में की गई है-
रुनकी झुनकी बेटी मांगी ला
पढ़लो पंडितवा दामाद
हे छठी मैया
दर्शन दिहा अपार ।

छठ गीतों में शारदा सिन्हा और विंध्यवासिनी देवी के गाये गीत सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। अनुराधा पौडवाल, कल्पना, देवी, मैथिली ठाकुर आदि के गीत भी खूब बजते हैं । जिंदगी के केंद्र में सूरुजदेव हैं । जगत को समस्त ऊर्जा की प्राप्ति सूर्य से होती है । प्रतिवर्ष इस पवित्र लोक पर्व के दौरान लोक गायकों और गायिकाओं द्वारा नए-नए गीत भी पेश किए जाते हैं । हमने भी छठ के कई गीत गाये हैं जिनमें मगही, मैथिली और भोजपुरी गीत शामिल हैं। चननी तानले चलथि रघुवीर सेवका घुटी भर धोती भींजे, सोना षट्कोनिया हे दीनानाथ हे घुमइछा संसार पारंपरिक और कौने खेत जनमल धान-सुधान हो, कौने खेत डटहर पान हे माई गीतों के बोल हैं ।
वस्तुतः छठ गीतों की एक बड़ी ही समृद्ध परंपरा रही है । विंध्यवासिनी देवी और शारदा सिन्हा ने जो छठी मैया के जो गीत गाए हैं, वह अभी लोगों की जुबान पर हैं । बिहार के अलग-अलग जिलों में अलग-अलग पारंपरिक छठ गीत गाए जाते हैं। छठ पर्व के दौरान इन गीतों का बहुत महत्व होता है। लोकगीतों के बिना छठ पर्व अधूरे लगते हैं।
(नीतू कुमारी नवगीत बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका हैं।)

Dr Rishikesh

Editor - Bharat Varta (National Monthly Magazine & Web Media Network)

Recent Posts

जन्म दिन पर सीएम नीतीश के बेटे निशांत बोले-पापा मुख्यमंत्री बनेंगे

Bharat.varta Desk बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत ने रविवार को कहा कि… Read More

11 hours ago

पूर्व सीएम का बेटा जन्मदिन के दिन गिरफ्तार, 5 दिनों के रिमांड पर

Bharat varta Desk छत्तीसगढ़ के भिलाई में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल… Read More

2 days ago

मुंबई की तरह मोतिहारी का भी नाम हो…, पीएम मोदी ने बिहार की रैली में खींचा विकास का खाका, नीतीश भी मंच पर मौजूद

Bharat varta Desk प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार को विकसित राज्य बनाकर पूर्वी भारत को… Read More

2 days ago

भूपेश बघेल के बेटे के आवास पर ईडी का छापा

Bharat varta Desk ED ने शराब घोटाले से जुड़े मामले में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री… Read More

3 days ago

स्वच्छता का राष्ट्रीय सम्मान, हर पटनावासी का सम्मान : नीतू नवगीत

सब मिलकर आदतें सुधारें तो और बड़ी बनेगी पहचान : नीतू नवगीत Bharat Varta Desk… Read More

3 days ago

ED अधिकारी रहे कपिल राज ने दिया इस्तीफा

Bharat varta Desk प्रवर्तन निदेशालय (ED) के वरिष्ठ अधिकारी रहे और झारखंड व दिल्ली में… Read More

3 days ago