छठ महापर्व में मन्नत पूरी होने पर कोसी भराई की है अनूठी परंपरा

0

NEWSNLIVE DESK : छठ पूजा पर कोसी भरने की प्राचीन परंपरा है. दरअसल जब कोई व्रती छठ के मौके पर सूर्यदेव और छठ मैया से कोई मन्नत मांगता है और वह पूरी हो जाती है, तो उसे अगली छठ पर कोसी भरनी पड़ती है. एक तरह से यह सूर्यदेव और छठ मैया का आभार प्रकट करने का तरीका होता है. कोसी षष्ठी पर शाम को सूर्य के अर्ग्घ देने के बाद घर जाकर भरी जाती है।

सूर्यषष्ठी की संध्या में छठी मइया को अर्घ्य देने के बाद घर के आंगन या छत पर कोसी पूजन होता है। इसके लिए कम से कम चार या सात गन्ने की समूह का छत्र बनाया जाता है। एक लाल रंग के कपड़े में ठेकुआ , फल अर्कपात, केराव रखकर गन्ने की छत्र से बांधा जाता है। उसके अंदर मिट्टी के बने हाथी को रखकर उस पर घड़ा रखा जाता है।

मिट्टी के हाथी को सिन्दूर का टीका

मिट्टी के हाथी को सिन्दूर लगाकर घड़े में मौसमी फल व ठेकुआ, अदरक, सुथनी, आदि समाग्री रखी जाती है। कोसी पर दीया जलाया जाता है। उसके बाद कोसी के चारों ओर अर्घ्य की सामाग्री से भरी सूप, डगरा, डलिया, मिट्टी के ढक्क्न व तांबे के पात्र को रखकर दीया जलाते हैं। अग्नि में धूप डालकर हवन करते हैं और छठी मइया के आगे माथा टेकते हैं। यही प्रक्रिया सुबह नदी घाट पर दोहरायी जाती है। इस दौरान महिलाएं गीत गाकर मन्नत पूरी होने की खुशी व आभार व्यक्त करती हैं।

सुबह के अर्घ्य में गंगा घाट पर कोसी सजायी जाती है। अर्घ्य देने के बाद अर्पित प्रसाद गंगा में प्रवाहित कर श्रद्धालु ईखों को लेकर घर लौट जाते हैं। कोसी भराई में इस्तेमाल किये गए ईख पंचतत्व होते हैं। ये पांच ईख भूमि, वायु, जल, अग्नि और आकाश का प्रतिनिधित्व करते हैं।

About Post Author

5 1 vote
Article Rating
Subscribe
Notify of
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments
0
Would love your thoughts, please comment.x
()
x