क्रिया योग के पितामह और “ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी” के लेखक योगानंद जी की जयंती पर विशेष

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परमहंस योगानंद (5 जनवरी 1893 – 7 मार्च 1952)

News N Live Desk: आज पूरी दुनिया परमहंस योगानंद को याद कर रही है। 5 जनवरी को उनकी जयंती है। आज के ही दिन 1893 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर शहर में उनका जन्म बालमुकुंद पुरुष के रूप में हुआ था। एक रेल अधिकारी के घर जन्मे भारत के इस लाल ने परमहंस योगानंद के रूप में क्रिया योग पद्धति को पश्चिम के देशों में फैलाया और पूरी दुनिया में पूजित हुए। योगानंद जी को पश्चिम के देशों में क्रिया योग का पितामह भी कहा जाता है।

परमहंस योगानन्द आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा योगी कथामृत लिखी जो भारत की ऐसी किताब है जो आज भी दुनिया भर में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है। क्रिया योग को समझाने वाली यह एक श्रेष्ठ अध्यात्मिक कृति है। भारत की आध्यात्मिक सत्ता, संन्यास और आध्यात्मिक गुरुओं की महान परंपरा और अध्यात्म का विज्ञान को बेहतर ढंग से यह किताब समझाती है।

योगानंद ने दुनिया को बताया कि क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानंद जी सबसे पहले 1917 में अमेरिका में आयोजित धर्म सभा में भाग लेने पहुंचे थे। वहां उन्होंने अध्यात्म और विज्ञान पर प्रभावकारी भाषण दिया। उसके बाद लगातार पश्चिम के देशों में भ्रमण कर उन्होंने क्रिया योग का प्रचार प्रसार किया। वहां उन्होंने एक संस्था की भी स्थापना की जो आज भी वहां भारतीय आध्यात्म और योग का परचम लहरा रहा है। रांची में उनके द्वारा स्थापित योगदा सत्संग मठ अध्यात्मा शिक्षा के क्षेत्र में रोशनी बिखेर रहा है। योगानंद जी महावतार बाबाजी महाराज द्वारा प्रतिपादित क्रिया योग के गुरुओं की महान परंपरा के संत थे। उनके गुरु युक्तेश्वर जी महाराज थे, जो श्यामा चरण लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे। लाहिड़ी महाशय महावतार बाबाजी के प्रिय शिष्य थे। कहा जाता है कि श्यामाचरण लाहिड़ी महाशय की इच्छा थी कि क्रिया योग पर एक ऐसी किताब छपी जो दुनिया भर में पढ़ी जाए। उनकी सदिच्छा “ऑटोबायोग्राफी ऑफ ए योगी” यानी योगी कथामृत के रूप में इस तरह पूरी हुई कि अब तक इस किताब का दुनिया के 28 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। हर साल पूरी दुनिया में इस किताब की लाखों प्रतियां बिक रही है।

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