जानिए वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र नाथ तिवारी से….
पटना: 10 जनवरी को जनता दल यू की प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक होने जा रही है। इसमें नए प्रदेश अध्यक्ष के नाम की घोषणा हो सकती है। इसको लेकर पार्टी में हलचल बढ़ गई है। भावी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कई नामों की चर्चा हो रही है। नए प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर लेकर पार्टी नेतृत्व बेहद सतर्क है। इसके वजह भी है। इस बार जो प्रदेश अध्यक्ष होगा उसे संगठन को मजबूत करने के साथ-साथ विरोधी दलों से मुकाबला करना तो होगा ही, साथ ही साथ भाजपा से निपटने की कुब्बत उसे रखनी होगी। इसलिए पार्टी हर तरह से ठोक बजाकर नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन करना चाहती है।
जाहिर तौर पर प्रदेश अध्यक्ष वही होगा जिसे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चाहेंगे। लेकिन पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष व सांसद आरसीपी सिंह की पसंद भी अहम होगी। जदयू के जानकार बता रहे हैं कि जिसे आरसीपी चाहेंगे उसे ही नीतीश कुमार पसंद करेंगे।
वशिष्ठ नारायण को एक्सटेंशन नहीं
लगातार तीन बार से से प्रदेश अध्यक्ष रहे वशिष्ठ नारायण सिंह को अब एक्सटेंशन मिलना संभव नहीं है क्योंकि काफी उम्र हो चुकी है। उनकी अवस्था को ध्यान में रखकर ही अशोक चौधरी को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। इसलिए इस बार उनकी जगह पर किसी दूसरे नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की पूरी संभावना है।
अशोक चौधरी के लिए लॉबिंग
पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और मंत्री अशोक चौधरी को स्थाई प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के लिए जदयू का एक खेमा लॉबिंग कर रहा है। अशोक चौधरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफी नजदीक माना जाता है लेकिन आरसीपी सिंह के नहीं। उन्हें कई विभागों के मंत्री का भी जिम्मा दिया गया है। इसलिए जदयू के एक खेमे में उनके खिलाफ अंदर ही अंदर जबरदस्त विरोध है। उनसे विरोध रखने वालों का कहना है कि कांग्रेस से जदयू में आए अशोक चौधरी को पार्टी नेतृत्व द्वारा जरूरत से ज्यादा महत्त्व दिया जा रहा है। जबकि संबंधों के मामले में वे मध्यम मार्ग वाले नेता माने जाते हैं। ‘ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर…’ वाली नीति पर चलते हैं। लेकिन जदयू की मजबूरी यह है कि उसके पास अशोक चौधरी को छोड़कर वर्तमान कोई बड़ा दलित चेहरा भी नहीं है। लेकिन उसके बाद भी जानकारों के अनुसार मंत्री के साथ-साथ अशोक चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने की संभावना कम दिख रही है।
संतोष कुशवाहा की दावेदारी
संतोष कुशवाहा के जरिए लव-कुश समीकरण को साधने की कोशिश हो सकती है। जदयू में इस बात की भी चर्चा है कि लव-कुश समीकरण को मजबूत करने के लिए पूर्णिया के सांसद संतोष कुशवाहा को भी मौका दिया जा सकता है। संतोष की क्षवि निर्विवादित रही है। वे सबको साथ लेकर चलने वाले नेता माने जाते हैं।
फायरब्रांड प्रवक्ता नीरज कुमार रेस में
पूर्व मंत्री और विधान पार्षद नीरज कुमार पिछले दिनों जदयू के फायरब्रांड प्रवक्ता के रूप में उभरे हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पार्टी के पक्ष में राजद नेता लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव पर लगातार हमलावर होकर पार्टी में हार्डकोर इमेज बनाई है। राजनीति के जानकार यह भी बताते हैं कि इनदिनों नीरज कुमार मुख्यमंत्री और सरकार के बौद्धिक कवच बनकर उभरे हैं। इसके पहले की सरकार में वे सूचना और जनसंपर्क मंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने अपनी अच्छी क्षवि बनाई। लेकिन इस सरकार में उन्हें अभी मंत्री नहीं बनाया गया है। वे भूमिहार समाज से आते हैं। भूमिहार जाति से पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी को ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया है। लेकिन ऐसा माना जाता है कि नीरज कुमार की अपने समाज में प्रभावकारी छवि है। स्नातक क्षेत्र से विधान पार्षद का लगातार चुनाव जीत रहे नीरज का छात्र-युवाओं से भी सीधा जुड़ाव रहता है। इसके अलावे एक खास बात यह है कि नीरज कुमार मोकामा के बाहुबली राजद विधायक अनंत सिंह के निशाने पर भी हैं। ऐसे में उन्हें मजबूती देने के लिए भी पार्टी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे सकती है। जदयू के कद्दावर और प्रभावशाली नेता ललन सिंह और अनंत सिंह के बीच चुनावी संग्राम में नीरज कुमार ने ललन सिंह के पक्ष में सबसे अधिक खुलकर समर्थन में दिखे थे। इस वजह से ललन सिंह का भी पसंद नीरज कुमार हो सकते हैं। ऐसा राजनीतिक गलियारे में चर्चा है। नीरज को मुख्यमंत्री का भी विश्वस्त माना जाता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि नाराज सवर्णों को साधने के लिए नीरज को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जाता है या फिर से एक बार मंत्री बनाया जाता है।
आरसीपी का सानिध्य
जदयू के एक प्रवक्ता संजय सिंह और पूर्व विधान पार्षद रणबीर नंदन का नाम भी प्रदेश अध्यक्ष के लिए आ रहा है। संजय को विधान परिषद के लिए भी दुबारा मौका नहीं मिला है। वहीं रणबीर नंदन भी दुबारा विधान परिषद मनोनीत होने के लिए वेटिंग में हैं। रणबीर नंदन पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह के करीबी माने जाते हैं। हालांकि रणबीर नंदन जिस कायस्थ समाज से आते हैं, उस समाज का वोट प्रतिशत कम होने की वजह से इन्हें प्रदेश बनाये जाने की संभावना कम ही है। राजपूत समाज के पूर्व विधान पार्षद संजय सिंह भी आरसीपी के निकट माने जाते हैं। राजपूत समाज के ही पूर्व मंत्री जय कुमार सिंह के नाम की भी चर्चा है। जय कुमार सिंह इस बार चुनाव हार गए हैं। राजपूत समाज के वशिष्ठ नारायण के बदले किसी राजपूत को ही बनाने की भी चर्चा है।
दूसरे दलों से शामिल होने वाले नेताओं पर भी नजर
राजनीति के जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अप्रत्याशित फैसला लेने के लिए जाने जाते हैं। संगठन को मजबूत बनाने के लिए वह प्रदेश अध्यक्ष बनाने में भी अप्रत्याशित दांव चल सकते हैं। पिछले दिनों पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक को संबोधित करते हुए उन्होंने इस बात का संकेत दिया था कि आने वाले समय में कई दलों का जदयू में विलय होगा। कई महत्वपूर्ण नेता इस दल में शामिल होंगे। प्रदेश अध्यक्ष के लिए ऐसे नेताओं में भी संभावना तलाशी जा रही है। पिछले दिनों रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह, पूर्व सांसद अरुण कुमार समेत जदयू के कई पुराने नेताओं की नीतीश कुमार से निकटता बढ़ी है।
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