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आज अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस क्यों मनाते हैं, आइए जाने इससे जुड़ी बांग्लादेश के शहीद छात्रों की कहानी


पटना: हर साल 21 फरवरी अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित कर रखा है. दुनिया भर के विभिन्न भाषाओं के सम्मान में इस दिन अलग-अलग देशों में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. अपनेेेेे देश भारत मेंं भी स्कूल ,कॉलेज और अन्य संस्थानों में मातृभाषा के विकास पर निबंध, प्रश्नोत्तरी, वाद विवाद और अन्य कार्यक्रम एक सप्ताह तक चलते हैं.

बांग्लादेश से जुड़ा है इतिहास

इस दिवस का इतिहास बांग्लादेश से जुड़ा है. दरअसल यह दिन बांग्लादेश के 4 शहीद छात्रों को भी समर्पित है. इन छात्रों ने बांग्ला भाषा के सम्मान के लिए आंदोलन चलाया था.दरअसल भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद 1948 में पाकिस्तान सरकार ने उर्दू को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया. इसका पूर्वी पाकिस्तान -जो अब बांग्लादेश कहलाता है- में भारी विरोध हुआ. प्रदर्शन का स्वरूप लगातार व्यापक होता चला गया .

21 फरवरी 1952 की घटना

21 फरवरी 1952 को ढाका यूनिवर्सिटी के छात्रों ने वहां की जनता के साथ मिलकर इतना भयानक विद्रोह कर दिया कि स्थिति कंट्रोल के बाहर हो गई. पुलिस ने फायरिंग की जिसमें 4 छात्र मारे गए. लेकिन इसके बाद आंदोलन और उग्र हो गया . पूर्वी पाकिस्तान में उर्दू को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने के खिलाफ विरोध की ऐसी लहर फैली कि 29 फरवरी 1956 को बांग्ला भाषा को पाकिस्तान में आधिकारिक भाषा का दर्जा देने के लिए सरकार को बाध्य होना पड़ा. इसके बाद यूनेस्को ने 1999 में 21 फरवरी के दिन भाषा आंदोलन के दौरान मारे गए चारों छात्रों के सम्मान में अंतरराष्ट्रीय भाषा दिवस मनाने की घोषणा की. पहली बार 21 फरवरी 2000 को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के रूप में मनाया गया था.
(आनंद /चंदन की रिपोर्ट)

Ravindra Nath Tiwari

तीन दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय। 17 साल हिंदुस्तान अखबार के साथ पत्रकारिता के बाद अब 'भारत वार्ता' में प्रधान संपादक।

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