रवींद्र नाथ तिवारी
पुलिस कप्तान के दिनों की कहानी
बात वर्ष 2000 के आसपास की है. मेरे परिचित और गुजरात में पदस्थापित एक आईपीएस अधिकारी की मां की मारुति कार पटना में अपराधियों ने लूट ली थी . उस समय पटना में सुनील कुमार वरीय पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात थे. घटना की सूचना मिलने के बाद उन्होंने 5 दिनों में न केवल कार बरामद करवा लिया बल्कि 15 दिनों के भीतर मुख्य लूटेरा एनकाउंटर में मारा गया. यह वह दौर था जिसे आज जंगलराज की संज्ञा दी जाती है. उस राज में भी आईपीएस अफसर के रूप में सुनील कुमार की कार्यशैली कुछ ऐसी थी कि हर लोग उनके कायल थे. आज की हालत तो यह है कि लूट के सामान बरामद करने की बात तो दूर रही, अपराधियों को पकड़ने में भी मनगढ़ंत कहानियां बनाई जा रही है.
1987 बैच के आईपीएस अधिकारी सुनील कई साल तक पटना के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात रहे. मगर उनके स्वभाव, संस्कार और काम कुछ ऐसे थे कि आम से लेकर खास तक हर कोई उन्हें पसंद करता था.
अभयानंद के अनुसार सुनील सकारात्मक सोच के इंसान
पूर्व डीजीपी अभयानंद से पिछले दिनों बात हो रही थी. वे बता रहे थे कि सुनील की सबसे बड़ी विशेषता उनकी सकारात्मक सोच है . किसी भी समस्या का तुरंत हल निकालने की क्षमता है उनमें. पुलिस अधिकारी के रूप में जो भी टास्क मैं उन्हें देता था, वे तुरंत उसे पूरा कर मुझे रिपोर्ट करते थे. अभयानंद बताते हैं कि बड़े -बड़े अपराधों से लेकर जमीन विवाद या घरेलू विवाद, हर मामले का तुरंत हल निकालते थे सुनील.
20 साल का विवाद 10 दिनों में निपटाया
एक मेरा अपना अनुभव है. वर्ष 2004 की बात है. उन दिनों मैं पटना हिंदुस्तान अखबार में ब्यूरो रिपोर्टर के रूप में काम कर रहा था. पटना के मेरे एक परिचित परिवार के दो भाइयों की संपत्ति को उनके बड़े भाई ने करीब 20 साल से अपने कब्जे में कर रखा था. संपत्ति हड़पने वाले बड़े भाई राजद के प्रमुख नेता थे. यह परिवार दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों का भी रिश्तेदार था जो बाद में सूबे के डीजीपी हुए. दोनों आईपीएस अधिकारियों ने इस विवाद के निपटारे के लिए प्रयास किए थे मगर सफल नहीं हुए. उस परिवार के एक सदस्य हमारे काफी परिचित थे. उन्होंने अपनी परेशानी मुझे बताई और मदद मांगी. मेरे कहने पर उस समय के डीजीपी नारायण मिश्रा ने पटना के एसएसपी सुनील कुमार के पास उनके मामले को भेजा. उस परिवार के लोगों को तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने पाया कि जो मामला 20 साल से विवादों में था उसका 10 दिनों के भीतर सुनील कुमार ने निपटारा कर दिया. राजद नेता से उनके भाइयों की संपत्ति मुक्त करवा दी.
सबका साथ ,सबका विश्वास
सुनील कुमार बिहार के एक ऐसे आईपीएस अफसर थे जिन्होंने अपने विशिष्ट कार्यशैली से आम लोगों के साथ- साथ पक्ष और विपक्ष के नेताओं का भी विश्वास जीता. उनकी पहचान एक तेजतर्रार मगर सौम्य स्वभाव वाले अधिकारी की थी.
लालू राज में वे 7 साल तक पटना के सीनियर एसपी रहे. धनबाद, खगड़िया समेत कई जिलों के एसपी रहे. पटना , गया, मुंगेर रेंज में डीआईजी और आईजी रहे. नीतीश राज में भी वे सरकार के भरोसेमंद अधिकारी साबित हुए. उन्होंने डीजी, पुलिस भवन निर्माण निगम के रूप में अपनी सेवा खत्म की.
वन ऑफ द बेस्ट पुलिस ऑफिसर इन बिहार
यह बात उन दिनों की है जब सुनील कुमार एडीजी हेडक्वार्टर के रूप में पदस्थापित थे. वर्तमान में जदयू सांसद ललन सिंह उस समय बिहार सरकार के मंत्री थे और भागलपुर के प्रभारी मंत्री. एक होटल में मैं मंत्री के साथ बैठा हुआ था . वहां जदयू के जिलाध्यक्ष विभूति प्रसाद गोस्वामी और बिहार पुल निर्माण निगम के सदस्य डॉ शैलेश प्रसाद सिंह समेत और भी चार- पांच लोग मौजूद थे . उनमें से एक आदमी ललन सिंह से इस बात की शिकायत करने लगा कि नीतीश सरकार ने जंगल राज के प्रतीक माने जाने वाले कई अफसरों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठा रखा है. उस व्यक्ति ने उन अधिकारियों में सुनील कुमार का भी नाम लिया. उस आदमी के सुनील कुमार का नाम लेते ही मंत्री ललन सिंह नाराज हो उठे. उन्होंने कहा- ऐसा मत कहिए. आप जानते नहीं हैं -सुनील कुमार इज वन ऑफ द बेस्ट पुलिस ऑफिसर इन बिहार.
परिवारिक संस्कार
सुनील कुमार अनुसूचित जाति से आते हैं मगर 1987 में उन्होंने भारतीय प्रशासनिक पुलिस सेवा की परीक्षा में जनरल कोटा से बाजी मारी थी. इनके एक भाई भारतीय विदेश सेवा में हैं. इनके बड़े भाई अनिल कुमार भोरे विधानसभा क्षेत्र से दो बार कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं. इस बार सुनील कुमार के लिए उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा . अनिल कुमार दो बार राज्यसभा सदस्य भी रह चुके हैं . सुनील कुमार के पिता चंद्रिका राम भी राजनीति में थे. वे विधान पार्षद हुआ करते थे. लंबे समय से राजनीति में होने के बाद भी वे और उनका परिवार कभी विवादों में नहीं रहा. सुनील राज्य के पहले पुलिस अधिकारी हैं जो बिहार सरकार में मंत्री बने हैं.
नीतीश के शराबबंदी अभियान को करेंगे तेज
आईपीएस अफसर के रूप में शानदार पारी खेलने के बाद सुनील कुमार ने राजनीति में भी अपनी धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई है. वे पहली बार जदयू से विधायक बने और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनपर इतना अधिक भरोसा किया कि पहली बार में ही सीधे मंत्री बना दिया. वह भी उत्पाद, मद्य निषेध और निबंधन जैसे महत्वपूर्ण विभाग का. बिहार में शराबबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राष्ट्रस्तरीय चर्चित अभियान है. इस अभियान को अधिक से अधिक धारदार बनाने और शराबबंदी कानून को शत प्रतिशत सफल बनाने के लिए मुख्यमंत्री ने सुनील कुमार को शराब विभाग के मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी है . शराबबंदी एक ऐसा अभियान है जिससे बिहार के समाज को बहुत राहत मिली है मगर अभी भी बड़े पैमाने पर राज्य में शराब बिक रही है. बड़ी संख्या में आम से लेकर खास लोग अभी भी धड़ल्ले से जाम छलका रहे हैं . ऐसे में उत्पाद और मद्य निषेध मंत्री सुनील कुमार के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं जिनका मुकाबला करना साधारण काम नहीं है . अब समय बताएगा कि वे इन चुनौतियों का किस तरह से मुकाबला करते हैं और मुख्यमंत्री के विश्वास पर खरे उतरते हैं.
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