जयंती विशेष: सत्याग्रह आंदोलन के दौरान बीहपुर में अंग्रेजों ने बरसाई थी डॉ राजेंद्र प्रसाद पर लाठियां: स्वराज आश्रम दे रहा है इस घटना की गवाही

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शिव शंकर सिंह पारिजात

भागलपुर। 3 दिसम्बर का दिन आते ही भागलपुर जिला के नवगछिया अनुमंडल अन्तर्गत बीहपुर प्रखंड में स्थित स्वराज आश्रम की चर्चा प्रासंगिक हो उठती है क्योंकि यहां आजादी की लड़ाई के दौरान सत्याग्रह करते हुए देश के प्रथम राष्ट्रपति और देशरत्न से नवाजे गये डॉ. राजेंद्र प्रसाद पर गोरी हुकूमत के द्वारा लाठियां बरसाई गयी थीं जिसकी चर्चा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में प्रमुखता से की गई है।

डॉ राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को जीरादेई में हुआ था। भारत की आजादी की लड़ाई में उन्होंने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था तथा कांग्रेस में शामिल होने वाले बिहार के वह प्रमुख नेताओं में से थे। वकालत में पोस्ट ग्रैजुएट डॉ. राजेंद्र प्रसाद महात्मा गांधी के बहुत बड़े समर्थक थे। डॉ. राजेंद्र प्रसाद को 1931 में सत्याग्रह आंदोलन और 1942 में हुए भारत छोड़ो आंदोलन के लिए माहात्मा गांधी के साथ जेल भी जाना पड़ा था। डॉ. राजेंद्र प्रसाद साल 1934 से 1935 तक कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। 1946 में हुए चुनाव के बाद उन्हें केंद्र सरकार में खाद्य एवं कृषि मंत्री बनाया गया था। राष्ट्र के प्रति उनके योगदान को देखते हुए उन्हें देश के सबसे बड़े पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।

परतंत्रता के दिनों में बीहपुर का स्वराज आश्रम स्वतंत्रता सेनानियों का केंद्र बना हुआ था। यहाँ सूत कताई के साथ कांग्रेस कार्यालय भी था। 1930 मेंं सत्याग्रह आंदोलन के दौरान यहां जमकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई, शराब के ठेकों में तोडफ़ोड़ की गई, जमकर पिकेटिंग हुई, आश्रम में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया जो अंग्रेजों को नागवार गुजरा। जिला मजिस्ट्रेट और एसपी वहां पुलिस बल के साथ डटे हुए थे। इसी दौरान वहां डॉ राजेंद्र प्रसाद की बीहपुर में सभा चल रही थी। आंदोलनकारियों के जोश को देख अधिकारी बौखलाए हुए थे। बस क्या था वे सभा में लाठियां बरसाने लगे। राजेन्द्र प्रसाद पर भी लाठियां चलीं, वे बुरी तरह से घायल भी हुए, पर लोगों ने अपनी जान पर खेलकर उन्हें बचाया। जंगल की आग की तरह पूरे जिले में यह समाचार फैल गया और आंदोलन उग्र हो उठा।

आज बीहपुर का स्वराज आश्रम आजादी की उस घटना का गवाह बना हुआ है। बीहपुर के लोग प्रति वर्ष उक्त घटना की याद में कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं। किंतु आजादी का यह स्मारक आज उपेक्षा का शिकार है। इसे एक राष्ट्रीय स्तर के स्मारक के रूप में संवारने की आवश्यकता है।

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